Book Title: Chandrayan Vrat Katha Author(s): Publisher: View full book textPage 9
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चांद्रान | इंद्रके यचनसें रत्रासरको बचन बोलने भये॥२६॥ मनोनिश्चितहोके स्वर्गका राज करूं // 27 // अरु नुम हे वासु रयथा योग्य पृथ्वीका राज्य करो तब हे युधिष्ठिर स्त्रा कर ऐसे वचन सनके॥२८॥ इंद्रसहिन देवतान कों बोलाय के ऐसा कहता भयाकि हे देवो तुमारेमें कपट अधिकहै इस्मेमै तुम्हारा वचन नही माननाई॥२९॥ जोतुम श अहंस्वर्गस्पराज्यहिविधास्यामिसमाहितः 27 त्वंचापिपृथिवीराज्यंकुरुरायथोचित॥शु बाबासुरोराजन्देवनाबलचिंतकाः 28 उवाचवचनदेवान्सपिभाष्यामहेश्वरान्॥नमन्येहबचोदेवायदिव्याजविशेषनः२९ कियनेचेदनोयूयशपथकतेमहंथामममृत्युर्यदाचेतेनभने चकदाचन 30 नराचीनदिवाचापिनो, वचनीरसैः। नशलनवचैवास्त्रैर्नपाषाणैर्नदारुभिः॥ 31 नदाहंपृथिवीराज्यकरिष्यामिपुरंदर॥ पय करो तो तुम फहोजैसा मैकरूं इतना काम मेरा होगाचाहिये कदापिकाल मेरी मृत्यु नहोय॥३०॥रात्रि में मृत्युनहोप दिनकाभीनहोय आलेसें अशष्फसें मृत्यु नहोय और शस्त्रसें अरु अस्वसें मृत्युनहोय फिरपापापा अरु काठसें मृत्युनहोय॥३१॥ नोमै पृथ्वीका राज्य क For Private and Personal Use OnlyPage Navigation
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