Book Title: Chandrayan Vrat Katha Author(s): Publisher: View full book textPage 8
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नब घडापराकमधारी असुर संग्रामके वीचमें ऐरावन हस्तीसहिन इंद्रको मुखकर्के नाचमन कर्ता भया॥२२॥ तव रहस्पनिजी कुंभाव्हय नामें अस्यकों चलावनेभये निनमहाअस्वसें रमाकर वार पार उचा सीरचाने लगा॥२३॥ अरु प्रमादको प्राप्ति होनाभया तबइंद्रऐरावत हस्नी सहित स्त्रारूरके मुरपसें निस नुदासरोमहावीर्यऐरावनसमन्वितं। मपचानमहाबुद्देआचचाममुपेनवे 22 तदा कुंभाव्दयंचाखूमुमोचधिषगोगुरुः॥नेनासुरोमहारराजूभनेसममुहुर्मुहुः २२प्रमाद मगमन्त्रशकोनिस्तान्मुपान्॥ऐरावनेनसहितोदेवाहर्षमुपाययुः 25 पुनर्बभूवमध ननस्यचैवासुरेातु समषीन्समाहूयुतपोयोगधरास्तदा २५नंदायुमहाधोरेदेवनाबेलसू दने॥शकपास्येनसत्दृष्टारत्तमूचुरशकिनाः 25 रनाभया तब देवता हर्षिन होने भये॥२४ फिर दैत्यके अरु रंद्रके युद्ध होने लगा तिनसमें तप अरु योगकू धरनेवाले सप्तर्षियोंकू बोलायके // 25 // इंद्रा कछुकहना भया तब देवनके बलकेनाशकारक ऐसे पोरमहा भयानक युद्दमें सप्तर्षि शंकारहिन हर्षित होको For Private and Personal Use OnlyPage Navigation
1 ... 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26