Book Title: Chandrayan Vrat Katha
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Page 12
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जहांसपि पीसाइंद्र नावै नावन इंद्रतुमहोजायो॥ 42 // नव नहुषराजा तिन देवोंके ऐसे चचन सन| के बोलताभयाकि मैनो नहुषहूं अरु तुमबडे तेजस्वी देनताहो // 43 // मै तेनरहित वर्गका राजा कैसे हो उंगासो विचार करो ऐसा नहुपरांजाने कहा नव देवनहुषराजापनि बोलने भये॥४४।। हम तेरेको ते. यावदिदःसमायातिनादिंद्रोभवत्पभो 42 इतिवाक्यंतदानेषांश्रुलाराजाजगादह ॥अहंहिमानगोनामयूयंदेवामहोजसः४३कथराजाभवामोयहीनतेजाविचार्यता।। इत्युक्तास्लेस्पूनिनादेवाउजुलदानृपं 44 वयंतेजमदास्यामोमहातेजाविष्यति॥तहाराजापिस्वर्गस्पराज्यसमाहित 45 इंद्रस्पभुवनेकिंचित्ययदस्लिसुरोत्तमाः॥नस मत्यमादायदर्शयतुममाग्रतः 46 जदेवेंगे तिनमें तुम मा नेजस्तीहोगा तर राजा अच्छीतरहसें स्वर्गका राज्यकर्ताभया॥४५॥ पीछे राजा देवनकों वचन बोलाकि हे सरोत्तमोइंदभवना मेंजोकोई वस्तु है वो सब मेरेकू दिरपावो॥४६॥ नब देवनाओने इंद्रकी सब समृद्धि दिगई निनकीदे || For Private and Personal Use Only

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