________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
जास जोग, बहु पुण्ये लहो ॥ ४ ॥ तिहुअण सार अपार एह, महिमा मन धारो, ॥ परिहर पर जंजाल जाल, नित्य एह संभारो ॥ ५ ॥ सिद्धचक्र पद सेवतां, सहजानंद स्वरूप || अमृतमय कल्याणनिधि. प्रगटे चेतन भूप ॥ ६ ॥ इति ॥ ॥ श्री पर्युषण चैत्यवंदन ॥
॥ पर्व पर्युषण गुणनीलो, नवकल्पविहार; चार मासान्तर थीर रहे, एहीज अर्थ उदार ॥ १ ॥ आषाढ शुद्ध चउदश थकी, संवत्सरी पंचास; मुनिवर दिन सित्तेरमें, पडिक्कमतां चौमास ॥ २ ॥ श्रावक पण समता धरी, करे गुरुना बहुमान; कल्पसूत्र सुविहित मुखे, सांभले थइ एक तान ॥ ३ ॥ जिनवर चैत्य जुहारीए, गुरु भक्ति विशाल; प्राये अष्ट भवांतरे, air शिव वरमाल ॥ ४ ॥ दर्पणथी निजरूपनो, जुवे सुदृष्टि रुप दर्पण अनुभव अर्पण, ज्ञान रमण मुनि भूप ॥ ५ ॥ आत्म स्वरुप विलोकतांए, प्रगट्यो मित्र स्वभाव, राय उदायी खामणां पर्वपर्युषणदाव
For Private And Personal Use Only