________________
स्वयंभू स्तोत्र ]
[ ८९ श्रीचन्द्रप्रभ जिन-स्तुति
(भुजंगप्रयात छन्द) प्रभू चन्द्रसम शुक्ल वर वर्णधारी,
जगत नित प्रकाशित परम ज्ञानचारी। जिनं जित कषायं महत पूज्य मुनिपति,
न| चन्द्रप्रभु तू द्वितीय चन्द्र जिनपति ॥३६॥
हरै भानु किरणें यथा तम जगत का,
तथा अंग भामण्डलं तम जगत का। शुकल ध्यान दीपक जगाया प्रभू ने,
हरा तम कुबोधं स्वयं ज्ञान भू ने ॥३७॥
स्वमत श्रेष्ठता का धरै मद प्रवादी,
सुनें जिन वचन को तजें मद कुवादी। यथा मस्त हाथी सुनें सिंह गर्जन,
तजै मद तथा मोह का हो विसर्जन ॥३८॥
तु ही तीन भू में परम पद प्रभू है,
करै कार्य अद्भुत परम तेज तू है। जगत नेत्रधारी अनन्त प्रकाशी,
___ रहे नित सकल दुख का तू विनाशी ॥३९॥
तु ही चन्द्रमा भवि कुमुद का विकाशी,
किया नाश सब दोष मल मेघराशी। प्रगट सत् वचनकी किरणमाल व्यापी,
करो मुझ पवित्रं तु ही शुचि प्रतापी॥४०॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org