Book Title: Bruhad Adhyatmik Path Sangraha
Author(s): Abhaykumar Devlali
Publisher: Kundkundswami Swadhyaya Mandir Trust Bhind

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Page 372
________________ बारह भावना ] [३६१ मोह नींद के जोर, जगवासी घूमैं सदा। कर्म चोर चहुँ ओर, सरवस लूटें सुध नहीं ॥७॥ सतगुरू देय जगाय, मोह नींद जब उपशमैं। तब कछु बनहिं उपाय, कर्म चोर आवत रूकैं॥८॥ ज्ञान दीप तप तेल भर, घर शोधै भ्रमछोर । या विधि बिन निकसैं नहीं, पैठे पूरब चोर ॥९॥ पंच महाव्रत संचरन, समिति पंच परकार। प्रबल पंच इन्द्रिय विजय, धार निर्जरा सार ॥१०॥ चौदह राजु उतंग नभ, लोक पुरूष संठान। तामें जीव अनादि तें, भरमत हैं बिन ज्ञान ॥११॥ धन कन कंचन राज सुख, सबहि सुलभकर ज्ञान। दुर्लभ है संसार में, एक जथारथ ज्ञान ॥१२॥ जाँचे सुर तरू देय सुख, चिन्तत चिन्ता रेन। बिन जाँचे बिन चिन्तये, धर्म सकल सुख देन॥१३॥ कविवर भूधरदास (पार्श्वपुराण से उद्धृत) द्रव्य सुभाव बिना जग माहिं, पर यै रूप कछू थिह नाहिं। तन धन आदि दीखे जेह, काल अगनि सब ईंधन तेह ॥१॥ भव वन भ्रमत निरन्तर जीव, याहि न कोई शरन सदीव। व्योहारे परमेष्ठी जाप, निहचै शरन आपको आप ॥२॥ सूर कहावै जो सिर देय, खेत तजै जो अपयश लेय। इस अनुसार जगत की रीत, सब असार सब ही विपरीत ॥३॥ तीन काल इस त्रिभुवन माहिं, जीव संगाती कोई नाहिं। एकाकी सुख दुख सब सहैं, पाप पुण्य करनी फल लहै॥४॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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