Book Title: Bruhad Adhyatmik Path Sangraha
Author(s): Abhaykumar Devlali
Publisher: Kundkundswami Swadhyaya Mandir Trust Bhind

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Page 388
________________ [३७७ अपूर्व अवसर ] चार घातिया कर्मों का क्षय हो जहाँ, हो भवतरू का बीज समूल विनाश जब। सकल ज्ञेय का ज्ञाता-द्रष्टा मात्र हो, कृतकृत्यप्रभु वीर्य अनंतप्रकाश जब ॥१५॥ चार अघाति कर्म जहाँ वर्ते प्रभो, जली जेवरीवत् हो आकृति मात्र जब। जिनकी स्थिति आयु कर्म आधीन है। आयुपूर्ण हो तो मिटता तन-पात्र जब ॥१६॥ मन-वच-काया अरू कर्मों की वर्गणा, छूटे जहाँ सकल पुद्गल सम्बन्ध जब। यही अयोगी गुणस्थान तक वर्तता, महाभाग्य सुखदायक पूर्ण अबंध जब ॥१७॥ इक परमाणु मात्र की न स्पर्शता, पूर्ण कलङ्क विहीन अडोल स्वरूप जब। शुद्ध निरञ्जन चेतन मूर्ति अनन्य मय, अगुरूलघु अमूर्त सहज पदरूप जब ॥१८॥ पूर्व प्रयोगादिक कारक के योग से, ऊर्ध्वगमन सिद्धालय में सुस्थित जब। सादि अनन्त अनन्त समाधि सुख में, अनन्तदर्शन ज्ञान अनन्त सहित जब ॥१९॥ जो पद झलके श्री जिनवर के ज्ञान में, कह न सके पर वह भी श्री भगवान जब। उस स्वरूप को अन्य वचन से क्या कहँ. अनुभवगोचर मात्र रहा वह ज्ञान जब ॥२०॥ यही परमपद पाने को धर ध्यान जब, शक्ति विहीन अवस्था मनरथरूप जब। तो भी निश्चय 'राजचन्द्र के मन रहा, प्रभु आज्ञा से होऊँ वही स्वरूप जब ॥२१॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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