Book Title: Bruhad Adhyatmik Path Sangraha
Author(s): Abhaykumar Devlali
Publisher: Kundkundswami Swadhyaya Mandir Trust Bhind

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Page 389
________________ ३७८] [ वृहद् आध्यात्मिक पाठ संग्रह कुन्दकुन्द शतक (पद्यानुवाद) सुर-असुर-इन्द्र-नरेन्द्र-वंदित कर्ममल निर्मलकरन। वृषतीर्थ के करतार श्री वर्द्धमान जिन शत-शत नमन ॥१॥ अरहंत सिद्धाचार्य पाठक साधु हैं परमेष्ठि पण। सब आत्मा की अवस्थाएँ आतमा ही है शरण ॥२॥ सम्यक् सुदर्शन ज्ञान तप समभाव सम्यक् आचरण। सब आत्मा की अवस्थाएँ आतमा ही है शरण ॥३॥ निर्ग्रन्थ है नीराग है निःशल्य है निर्दोष है। निर्मान-मद यह आतमा निष्काम है निष्क्रोध है॥४॥ निर्दण्ड है निर्द्वन्द्व है यह निरालम्बी आतमा। निर्देह है निर्मूढ़ है निर्भयी निर्मम आतमा ॥५॥ मैं एक दर्शन-ज्ञानमय नित शुद्ध हूँ रूपी नहीं। ये अन्य सब परद्रव्य किंचित् मात्र भी मेरे नहीं ॥६॥ चैतन्य गुणमय आतमा अव्यक्त अरस अरूप है। जानो अलिङ्गग्रहण इसे यह अनिर्दिष्ट अशब्द है ।।७।। जिस भाँति प्रज्ञा छैनी से पर से विभक्त किया इसे। उस भाँति प्रज्ञाछैनी से ही अरे ग्रहण करो इसे ॥८॥ जो जानता मैं शुद्ध हूँ वह शुद्धता को प्राप्त हो। जो जानता अविशुद्ध वह अविशुद्धता को प्राप्त हो ॥९॥ यह आत्म ज्ञानप्रमाण है अर ज्ञान ज्ञेयप्रमाण है। हैं ज्ञेय लोकालोक इस विधि सर्वगत यह ज्ञान है॥१०॥ चारित्र दर्शन ज्ञान को सब साधुजन सेवें सदा। ये तीन ही हैं आतमा बस कहे निश्चयनय सदा ॥११॥ 'यह नृपति है'- यह जानकर अर्थार्थिजन श्रद्धा करें। अनुचरण उसका ही करें अति प्रीति से सेवा करें ॥१२॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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