Book Title: Bhudhar Bhajan Saurabh
Author(s): Tarachand Jain
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan

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Page 4
________________ छोड़ (४७) । तू भगवान का भजन करना क्यों भूल गया (१०)? तूने अपनी आत्मा/ब्रह्म को नहीं पहचाना (७६), तू गुरु की सयानी सीख सुन, अपने पाँच इन्द्रियरूपी शत्रुओं को वश में कर (८०)। तुझे बार-बार कौन समझाये (६४)? हमने समझा दिया, अब तुझे जो उचित लगे सो कर (६७); तू जैसा करेगा वैसा ही फल भोगेगा क्योंकि तू ही कर्ता है और तू ही भोक्ता (६४) । ___ संसार की असारता एवं वृद्धावस्था - क्या तुझे पता नहीं कि यह काया, यह माया सब अस्थिर हैं (६२), यह तन एक वृक्ष के समान है (७५), यह काया रूपी गागर जर्जर होती जाती है (७३) । हे अभिमानी! बुढ़ापा आ रहा है, शरीर की प्रत्येक इन्द्रिय अपना रूप-बल छोड़ती हुई जर्जर-शिथिल होती जाती है, वे अब मन का साथ नहीं दे पार्ती (७१), यह शरीररूपी चरखा पुराना होता जाता है (७२), ये तन-धन सब पानी माहि पताशे की भाँति अस्थिर हैं (७९) । विपरीत क्रिया - गुरु समझाते हैं कि ऐसे में तू गाफिल होकर क्यों डोलता है? तेरे दिन व्यर्थ ही बीत रहे हैं (७४) 1 तू धर्म:शान्ति चाहता है तो उसी के अनुरूप क्रिया कर । तू धर्म/शान्ति प्रकट करना चाहता है और क्रिया करता है हिंसामयी, पापमयी (६०)। बिना विवेक के, बिना ज्ञान के तेरा मनोरथ कैसे सफल होगा? नामस्मरण - स्तुति - हे जीव! तू ऋषभ जिनेन्द्र का नाम जप (३, ४)। जिनराज का नाम मत भूल/निसार (३३), त जिनवर के नाम की माला जप (२३)। उनके नामस्मरण से कष्ट/पाप वैसे ही दूर हो जाते हैं जैसे सूर्य के उदय होने से अंधकार दूर हो जाता है (२५)। उनके नाम का स्मरण करनेवाला भक्त कहता है - थांकी कथनी म्हाने प्यारी लागे जी (२८), अजित जिन मेरी बिनती मानो (८), हे शांति जिनेन्द्र, मुझे भी तारिये (१)। इस प्रकार जिनेन्द्र के नाम स्मरण के लिए बार-बार प्रेरित किया गया है। जीवन का आदर्श - सदाचार का ग्रहण - गुरु समझाते हैं - हे भाई! अपना अन्तर/हृदय उज्ज्वल करी, कपटरूपी तलवार को तजो, तभी तुम्हारा कार्य सफल होगा (५४)। जीवन में सन्तोष धारण करो, हृदय में समता विचारो (७८) । पाँचों इन्द्रियों में यह चंचल मन ही मुखिया प्रमुख है अत: पहले उसे

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