Book Title: Bhimsen Nrup Charitra
Author(s): Ajitsagarsuri
Publisher: Sagargaccha Jain Sangh Sanand
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ShriMahavir JanArchanaKendra
प्रकूप विनय
शुद्धि
१
पत्रकम्
अवि
भीमसेन
नृपचरित्रस्य
प्रकुप विनये भूवि अधोऽ श्रोत्रयोःस नैव
অখ श्रोत्रयोस्तो
॥३
॥
नेष्टा
तथा नवनिकायाना,-मसुराणाश्च जीवनम् । पल्योपमद्वयश्चैक-सागरोपमसाधिकम् ॥ २२३ ॥ व्यन्तराणांशरीरच, सप्तहस्तप्रमाणकम् ।
आयुर्मानं तथाप्रोक्त-मेकपल्योपमं जिनैः ।। २२४ ॥ ज्योतिष्काणांशरीरन्तु, सप्तहस्तमितं विदुः । चन्द्रस्यायुरेकलक्षा-ऽधिकं पल्योपमं स्मृतम् ॥ २२५ ॥ सूर्यस्यायुः सहस्रेणा-ऽधिकं पल्योपमं तथा। प्रहाणामायुपोमान-मेकपल्योपमं स्मृतम् ॥ २२६ ॥ नक्षत्राणां तथा प्रोक्त-मायुर्मानं जिनेश्वरैः।
पल्योपमचतुर्थाश-स्तारकाणां तथैव च ।। २२७ ।। ८२ १ २ प्वपि
ध्वपि ८७ १२ वक्त्रा
वक्ता
७६
, ६ भिन्नत्ति
भिनत्ति - बन्धान्त विनोः पासवान्तर्भवेत्
५ (२२२) लोकमारभ्य (२२५)
लोकस्थाने निम्नलिखिताः श्लोकाः वायाः भावनाना शरीरन्तु, सप्तहस्तमितं स्मृतम् । पल्योपमद्वयञ्चायु-र्देशोनं परिकीर्तितम् ॥ २२२ ॥
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