Book Title: Bharatvarsh ka Itihas aur Jain Dharm Author(s): Bhagmalla Jain Publisher: Shree Sangh Patna View full book textPage 4
________________ (ग) .. हमें पुस्तकें देख कर बड़ा दुःख हुआ। पाश्चात्य विद्वानों की अपेक्षा भारतीय विद्वानों की इन कृतियों पर हमें अधिक दुःख हुश्रा । हम ने यह उचित समझा कि इन सज्जनों की सेवा में सामग्री पहुंचाई जावे जिससे इन के विचारों का परिमाजन हो सके। सन्तोष है कि हमें अपने परिश्रम में सफलता ही मिली है अर्थात् सभी लेखकों ने पुनरावृत्ति के समय इन त्रुटियों को दूर कर देने का वचन दे दिया है और एक दो के तो संशोधित संस्करण निकल भी चुके हैं। अगले पृष्ठों में ऐसी ही कुछ पुस्तकों का परिचय कराया जायगा। हमारा अभिप्राय इस से केवल यही है कि इतिहास प्रेमी सज्जनों को वस्तुस्थिति से परिचय हो जाय । अन्त में हम यह भी निवेदन कर देना उचित समझते हैं कि यदि काई सज्जन जैनधर्म का वास्तविक ज्ञान प्राप्त करने की इच्छ से हम से कभी कोई बात पूछना चाहे तो हम यथा . शक्ति उन की सेवा करने में अपना अहोभाग्य समझेगे। इस अवसर पर हम सहर्ष अपने परम मित्रों-विद्या वारिधि श्रीयुत् चम्पतराय जी, बैरिस्टर, हरदोई; श्री अजितप्रसाद जी, एम० ए०, लखनऊ, श्री जगमन्दिरलाल जी, *हमें यह लिखते हुये प्रति दुःख होता है कि १३ जुलाई, १९२७ को जैन समान का यह परम उज्ज्वल रत्न उस के हाथों से सदा के लिये छिन गया है। शोक ! ------ ---------------Page Navigation
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