Book Title: Bharatvarsh ka Itihas aur Jain Dharm Author(s): Bhagmalla Jain Publisher: Shree Sangh Patna View full book textPage 3
________________ (ख) में जो कुछ लिखा है वह अशुद्ध और भ्रमोत्पादक है। इस का कारण उन का जैन धर्म अथवा समाज से विद्वेष नहीं कहा जा सकता । किसी पर निष्प्रयोजन ही "हृदय-संकीर्णता" का दोषारोपण करना पाप है । परन्तु हम समझते हैं कि बहुत अंशों में जैन धर्म, समाज और साहित्य का पर्याप्त ज्ञान प्राप्त किये बिना ही यथाशक्ति उसका वर्णन करना इन भूलों के लये उत्तरदायी है। पिछले दो सालों में हमें ऐसी कई भारत-इतिहास की पुस्तकें देखने का अवसर मिला है । सभी ने अपनी २ योग्यतानुसार जैन धर्म का उपयुक्त शब्दों में वर्णन किया है, और करना भी चाहिये था क्योंकि यह एक ऐसी बात है कि बिना इस का परिचय कराये कोई पुस्तक सम्पूर्ण नहीं कही जा सकती। परन्तु सभी के विचार प्रायः अपरिपक्व और संशयात्मक ही पाये गये। यही प्रतीत हुआ कि विद्वान लेखकों ने इस विषय में पूर्वीय अथवा पाश्चात्य विद्वानों की सम्मतियों को जिन को उन्हों ने प्रगाढ़ परिश्रम के पश्चात् निर्धारित किया है अवलोकन नहीं किया, और नाहीं उन्हों ने स्वयं किसी जैन विद्वान से इन बातों के जानने की आवश्यक्ता समझी। इतना ही क्यों उन्हों ने सर्व साधारण को सुविदित दो चार सच्चो वातों से भी लाभ उठाना उचित नहीं समझा।Page Navigation
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