Book Title: Bhamashah Author(s): Dhanyakumar Jain Publisher: Jain Pustak Bhavan View full book textPage 4
________________ अपनी तरफ से श्री धन्यकुमार जैन 'सुधेश' तरुण लेखक एवं कवि हैं और इनसे साहित्य जगत परिचित होता जा रहा है। इन्होंने 'भामाशाह' नाटक लिखकर जैन साहित्य को जो भेंट दी है उसे हम साभार स्वीकार करते हैं। ___ हमें यह जानकर विशेष गौरव का अनुभव हो रहा है कि भामाशाह उच्च जैनकुल में उत्पन्न हुये एवं अहिंसा-प्रधान जैन धर्म के अनुयायी रहे। अब जिज्ञासा यह उठती है कि मामाशाह ने एक जैन होते हुए भी विख्यात हल्दीघाटी संग्राम में महाराणा प्रताप को पूर्ण सहयोग देकर शत्रु-सेना का संहार किया और कराया-यह कैसे सम्भव हो सका ? इस महान प्रश्न का समाधान नाट्यकार ने अपनी गवेषणा और शोध द्वारा स्पष्ट रूप से भामाशाह-ताराचन्द्र संवाद में किया है। कई तथ्यों द्वारा प्रमाणित करते हुए तरुण नाटककार ने बताया कि जैनधर्म की अहिंसा, कायर की अहिंसा नहीं किन्तु पीर की अहिंसा एवं सक्रिय अहिंसा है। उद्देश्य महान हो तो उसको चरितार्थ करनेके हेतु की गई हिंसाको हिंसा नहीं कह सकते । जैनाचार्य सोमदेव की व्याख्या को उद्धृत करते हुये नाट्यकार ने यह दिखाने का प्रयत्न किया है कि सोमदेव ने हिंसा के भय से विचलित एवं विमूढ़ भामाशाह के दुर्बल चित्त को स्थिर बनाया एवं उन्हें युद्ध के लिये प्रबुद्ध किया। भामाशाह ने इतिहास प्रसिद्ध युद्ध किया। समग्र जगत के सम्मुख जैनधर्म की अहिंसा के विषय में भ्रान्त धारणा को उन्मूल करने के लिये यह यथेष्ठ प्रमाण है। जैनजगत भामाशाह जैसी विभूति को पाकर धन्य है । भामाशाहने अपनी उदारता एवं अपरिमित त्याग द्वारा समग्र भारत का मुख उज्ज्वल किया है। 'भामाशाह' नाटक में भामाशाह के साथ महाराणा प्रताप को भी उचित मान्यता एवं प्रमुखता दी गई है-यह नाटककार की समदृष्टि का परिचायक है। हम श्री 'सुधेश' जी के उज्ज्वल एवं उन्नत भविष्य की कामना करते हुये आशा करते हैं कि साहित्य-जगत में ऐसी अन्य कृतियां प्रदान करने में वे कृपणता न करेंगे। सम्मति दाताओं के भी हम बड़े आभारी हैं जिन्होंने हमें ग्रन्थ प्रकाशन में प्रोत्साहित किया है। -प्रकाशकPage Navigation
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