Book Title: Bhaktmal
Author(s): Raghavdas, Chaturdas
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

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Page 15
________________ भक्तमाल च ] नाम था। मथुरा की चकलेदारी में सत्संग प्राप्त हुआ। हितहरिवंशजी की गद्दी के सेवक हुये, लालजीदास नाम मिला। राधावल्लभलालजी के उपासक हुये। दूसरा तर्जुमा एक और किसी ने किया है नाम याद नहीं है तीसरा तर्जुमा लाला गुमानीलाल कायस्थ रहने वाले रत्थक के, संवत् १९०८ में समाप्त किया। चौथा तर्जुमा लाला तुलसीराम रामोपासक लाला रामप्रसाद के पुत्र अगरवाले रहनेवाले मोरापुर अम्बाले के इलाके के, कलक्टरी के सरिश्तेदार। उस मूल भक्तमाल और टीका को संवत् १९१३ में बहुत प्रेम व परिश्रम करके शास्त्र के सिद्धान्त के अनुसार बहुत विशेष वाक्यों सहित अति ललित पारसी में उर्दू वाणी लिये हुए तर्जुमा करके चौवीस निष्ठा में रच के समाप्त किया। संवत् उन्नीस सौ सत्रह १९१७ श्रावण के शुक्ल पक्ष में पड़रौना ग्राम में जो श्यामधाम में मुख्य भगवद्धाम है तहाँ श्री राधाराजवल्लभलालजी ठाकुर हिंडोला झूल रहे थे। उसी समय 'उमेदभारतो' नामक सन्यासी रहने वाला ज्वालामुखी के जो कोटकांगड़े के पास है, भक्तमालप्रदीपन नाम पोथीं, जो पंजाब देश में अम्बाले शहर के रहने वाले लाला तुलसीराम ने जो पारसी में तर्जुमा करके भक्तमालप्रदीपन नाम ख्यात किया है, तिसको लिये हुये आये। उनके सत्कार व प्रेमभाव से पोथी हम ईश्वरीप्रतापराय को मिली। जब सब अवलोकन कर गये तो ऐसा हर्ष व आनन्द चित्त को प्राप्त हुआ कि वर्णन नहीं हो सकता। साक्षात् भगवत् प्रेरणा करके मनवांछित पदार्थ को प्राप्त कर दिया। व लाला तुलसीराम के प्रेम व परिश्रम की बड़ाई सहस्रों मुख से नहीं हो सकती। कुछ काल उसके श्रवण व अवलोकन का सुख लिया, तब मन में यह अभिलाषा हुई कि इस पोथी को देवनगरी में भाषान्तर अर्थात् तर्जुमा करें कि जो फारसी नहीं पढे हैं उन सब भगवद्भक्तों को आनन्ददायक हो, सो थोड़ा २ लिखते २ तीसरे वर्ष संवत् उन्नीस सौ तेईस १६१३ अधिक ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा को श्री गुरुस्वामी व भगवद्भक्तों की कृपा से यह भक्तमाल नाम ग्रन्थ सम्पूर्ण व समाप्त हुआ, व चौवीस निष्ठा में सत्रह विष्ठा तक तो ज्यों का त्यों क्रमपूर्वक लिखा गया परन्तु अठारहवीं निष्ठा से भक्तिरस के तारतम्य से क्रम में लगाकर इस ग्रन्थ में लिखा है। प्रथम (१) धर्मनिष्ठा जिसमें सात उपासकों का वर्णन और (२) दूसरी भागवतधर्मप्रचारक निष्ठा तिसमें बीस भक्तों को वरणन, तीसरी (३) साधुसेवा निष्ठाव सत्संगातिसमें पन्द्रह भक्तों की कथा, चौथी (४) श्रवण महात्म्य निष्ठा में ४ भक्तों की कथा और पांचवी (५) कीर्तन Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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