Book Title: Bhagwati Sutra Ka Darshanik Parishilan
Author(s): Tara Daga
Publisher: Prakrit Bharti Academy

View full book text
Previous | Next

Page 5
________________ (प्रकाशकीय) जैन आगम एवं प्राकृत भाषा से सम्बन्धित ग्रन्थों पर आधुनिक दृष्टि से हुए शोध कार्यों का प्रकाशन प्राकृत भारती अकादमी का मुख्य लक्ष्य रहा है। इसी कड़ी में डॉ० तारा डागा द्वारा लिखित भगवतीसूत्र का दार्शनिक परिशीलन नामक कृति को प्राकृत भारती अकादमी की पुष्प संख्या 314 के रूप में प्रकाशित कर रहे हैं। भगवतीसूत्र जैन आगम साहित्य का पाँचवाँ अङ्ग ग्रन्थ है। इसका मूल नाम व्याख्याप्रज्ञप्ति है। भगवान् महावीर तथा गौतम आदि शिष्यों के प्रश्रोत्तरों के रूप में संकलित इस ग्रन्थ का कलेवर अत्यन्त विशाल है। विश्व विद्या की ऐसी कोई विधा नहीं जिसका इसमें उल्लेख न हो। जैनाचार्यों ने इसे शास्त्रराज एवं तत्त्वविद्या की खान कहा है। विषय-वस्तु की विशालता एवं अक्रमबद्धता के कारण इस आगम पर अधिक शोध कार्य नहीं हआ। ऐसे में डॉ० तारा डागा द्वारा भगवतीसूत्र के दार्शनिक पक्ष को प्रस्तुत करने वाली यह कृति आगमों पर शोध कार्य करने वाले तथा उनका पठन-पाठन करने वाले स्वाध्यायी बन्धुओं तथा शोधार्थियों के लिए सामयिक प्रकाशन होगी। प्रस्तुत कृति की लेखिका पिछले कई वर्षों से प्राकृत भारती अकादमी के अन्तर्गत संचालित जैन विद्या एवं प्राकृत विभाग में अध्ययन-अध्यापन के कार्यों से जुड़ी हुई हैं। वे कई राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्ठियों में अपने शोध-पत्र भी प्रस्तुत कर चुकी हैं। प्राकृत एवं जैन विद्या से सम्बन्धित उनकी कुछ पुस्तकों का प्रकाशन पहले भी किया जा चुका है। प्रस्तुत शोध प्रबन्ध को प्रकाशन योग्य बनाने हेतु संस्थान की ओर से उनका हार्दिक आभार। उदारमना धर्मबन्धु श्री तेजराजजी बांठिया ने पुस्तक-प्रकाशन के लिये अर्थ सहयोग प्रदान किया, उनके प्रति प्राकृत भारती अकादमी हृदय से आभारी है। देवेन्द्रराज मेहता संस्थापक एवं मुख्य संरक्षक प्राकृत भारती अकादमी जयपुर

Loading...

Page Navigation
1 ... 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 ... 340