Book Title: Bhagwan Mahavir Prati Shraddhanjaliya
Author(s): Jain Mitramandal Dharmpur
Publisher: Jain Mitra Mandal

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Page 10
________________ जैन धर्म से विरोध उचित नहीं मुख्योपाध्याय श्री वरदाकान्त एम० ५० हमारे देश में जैन धर्म के सम्बन्ध में बहुत से भ्रम फैले हुये हैं। ९ साधारण लोग जैन धर्म को सामान्य जानते हैं कुछ इसको नास्तिक समझते हैं, अनेकों की धारणा में जैन धर्म अत्यन्त अशुचि तथा नग्न परमात्मा पूजक है। कुछ शङ्कराचार्य के समय जैन धर्म का प्रारम्भ होना स्वीकार करते हैं, कुछ महावीर स्वामी अथवा पार्श्वनाथ को जैन धर्म का प्रवर्तक बताते हैं, कुछ जैनधर्म की अहिंसा पर कायरता का इलजाम लगाते हैं, कुछ इसको हिन्दू अथवा बौद्ध धम की शाखा समझते हैं कुछ कहते हैं, कि यदि मस्त हाथी भी तुम पर आक्रमण करे तो भी प्राण रक्षा के लिये जैन मन्दिरों में प्रवेश मत करो'। कुछ वेदों और पुराणों को स्वीकार न करने तथा ईश्वर को कर्ता धर्ता और कर्मों का फल देने वाला न मानने के कारण जैनियों से विरोध करते रहते हैं। Prof:- Weber History of Indian Literature में स्वीकार किया है "जैनधर्म सम्बंधी जो कुछ हमारा ज्ञान है वह सब ब्राह्मण शास्त्रों से ज्ञात हुआ है।" सब पश्चिमी विद्वान् सरल स्वभाव से अपनी अज्ञानता प्रकाशित करते रहे हैं। इस लिये उनके मत की परीक्षा की कुछ आवश्यकता नहीं है। शंकराचार्य के समय जैन धर्म का चालू होना इस लिए सत्य १. न पठेद्यावनी भाषां प्राणैः कण्ठ शतैरपि । दस्तिना पोड्यमानोऽपि न गच्छेज्जिानमंदिरम् ॥ अर्थात्-प्राण भी जाते हों तो भी म्लेच्छों की भाषा न पढ़ो और हाथी से पीड़ित होने पर भी जैन मन्दिर में न जाओ। १०६ ]

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