Book Title: Bhagwan Mahavir Prati Shraddhanjaliya
Author(s): Jain Mitramandal Dharmpur
Publisher: Jain Mitra Mandal

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Page 86
________________ विदेहदेश-राजगृह से भ० महावीर का समवशरण वैशाली आया, जहाँ के महाराजा चेटक उनके उपदेश से प्रभावित होकर साय राज-पाट त्याग कर जैन साधु होगये थे और इन के सेनापति सिंहभद्र ने श्रावक के व्रत ग्रहण किये थे। . . वाणिज्यग्राम में जो वैशाली के निकट था भ० महावीर का समवशरण पाया तो वहां के सेठ आनन्द और इनकी स्त्री शिवानन्दा आदि ने उन से श्रावक के व्रत लिये थे। अङ्गदेश की राजधानी चम्पापुरी (भागलपुर) में भ० महावीर • का समवशरण पाया तो वहां के राजा कुणिक ने बड़ा उत्साह मनाया । वहां के कामदेव नाम के नगरसेठ ने उन से श्रावक के १२ व्रत लिये । सेठ सुदर्शन भी जैनी थे, रानी के शील का झूठा दोष लगाने पर राजा ने उनको शूली का हुक्म दे दिया तो सेठ सुदर्शन के ब्रह्मचर्य व्रत के फल से शूली सिंहासन बन गई, जिस से प्रभावित होकर राजा जैन मुनि हो गये। पोलासपुर में वीर-समवशरण आया वो वहाँ के राजा विजयसेन ने म. महावीर का बड़ा स्वागत किया । राजकुमार ऐवन्त तो उनके उपदेश से प्रभावित होकर जैन साधु हो गए थे , और मादालपुत्र नाम के कुम्हार ने श्रावक के व्रत लिये । कोशलदेश की राजधानी श्रावस्ती (जिले गोंडे का सहट-महट) में वीर समवशरण पहुँचा तो वहां के राजा प्रसेनजित (अग्निदत्त) में भक्तिपूर्वक भगवान का अभिनन्दन क्रिया' । लोग भाग्य भरोसे रहने के कारण साहस को खो बैठे थे, भ० महावीर के १.९. भ० महावीर (कामताप्रसाद) पृ० १३०-१३२ । . [३६६

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