Book Title: Bhagwan Mahavir Prati Shraddhanjaliya
Author(s): Jain Mitramandal Dharmpur
Publisher: Jain Mitra Mandal

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Page 81
________________ वर्गणाएँ (Karmic Molecules) योग शक्ति से प्रात्मा में खिंच कर आजाती हैं। श्रीकृष्ण जी ने भी गीता में यही बात कही है कि जब जैसा संकल्प किया जावे वैसा ही उसका सूक्ष्म व स्थूल शरीर बन जाता है और जैसा स्थूल, सूक्ष्म शरीर होता है उसी प्रकार का उसके श्रास-पास का वायु मण्डल होता है। वैज्ञानिक दृष्टि से भी यह बात सिद्ध है कि आत्मा जैसा संकल्प करता है वैसा ही उस संकल्प का वायु मण्डल में चित्र उतर जाता है। अमरीका के वैज्ञानिकों ने इन चित्रों के फोटू भी लिये हैं, इन चित्रों को जैन दर्शन की परिभाषा में कार्माणवर्गणाएँ कहते हैं । जो पाँच प्रकार के मिथ्यात्व बारह प्रकार के आव्रत , २५ प्रकार के कषाय", १५ प्रकार के योग, ५७.कारणों से आत्मा की ओर इस तरह खिंच कर आ जाते हैं जिस तरह लोहा चुम्बक की योग शक्ति से आप से आप खिंच पाता है और जिस तरह चिकनी चीज पर गरद आसानी से चिपक जाती है, उसी तरह कषायरूपी आत्मा से कर्म रूपी गरद जल्दी से चिपट जाती है। कमों के इस तरह खिच कर आने को जैन धर्म में "पानव" और चिपटने को बन्ध कहते हैं। केवल किसी कार्य के करने से ही कर्मों का पासव या बन्ध नहीं होता बल्कि पाप या पुण्य के जैसे विचार होते हैं उन से उसी प्रकार का अच्छा या बुरा आश्रव व बन्ध होता है। १. ध्यायतो विषयान् पुसः सहस्तेषूपजायते । सगात्संजायते कामः कामाक्रोधोऽभिजायते ॥ क्रोधाद्भवति संमोहः संमोहात्स्मृति विभ्रमः । स्मृतिभ्रशाद् बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति ॥ -गीता अ० ५, श्लोया ६२-६३ २-४. ईश्वर मीमांसा (दि० जैन सह) पृ० ६२ . . ५.८, "rhe way for uan to become God." This book's rolt. है विस्तार के लिये 'महाबन्ध' 'गोमटमार कर्मकाण्ड' आदि जैन ग्रंथ देखिये । ३४६]

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