Book Title: Bhagwan Mahavir Prati Shraddhanjaliya Author(s): Jain Mitramandal Dharmpur Publisher: Jain Mitra Mandal View full book textPage 8
________________ उसमें इतना प्रचुर पशुवध हुआ था कि नदी का जल खून से रक्त वर्ण हो गया था। उसी समय से उस नदी का नाम चर्मवती प्रसिद्ध है। पशुवथ से स्वर्ग मिलता है इस विषय में उक्त कथा साक्षी है, परन्तु इस घार हिंसा का ब्राह्मण-धर्म से विदाई ले जाने का श्रेय जैनधर्म को है । इस रीति से ब्राह्मणधर्म अथवा हिन्दू-धर्म को जैन धर्म' ने अहिंसा धर्म बनाया है । यज्ञ-यागादि कमे केवल ब्राह्मण ही करते थे क्षत्री और वैश्यों को यह अधिकार नहीं था और शूद्र बेचारे तो ऐसे बहुत विषयों में प्रभागे बनते थे। इस प्रकार मुक्ति प्राप्त करने की चारों वर्गों में एक सी छूट न थी। जैन-धर्म ने इस त्रुटि को भी पूर्ण क्रिया है । मुसलमानों का शक, इसाईयों का शक, विक्रम शक, इसी प्रकार जैन धर्म में महावीर स्वामी का शक (सन्) चलता है। शक चलाने की कल्पना जैनी भाईयों ने ही उठाई थी। आजकल यज्ञों में पशुहिंमा नहीं होती। ब्राह्मण और हिन्दुधर्म मे मांस-भक्षण, और मदिरा-पान बन्द हो गया सो यह भी जैनधर्म का ही प्रताप है । जैन-धर्म की छाप ब्राह्मण- धर्मपर पड़ी। १. जन-धर्म का महत्व (सूरत) भाग १ पृ८१-८२ ॥ ७६ ]Page Navigation
1 ... 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 ... 94