Book Title: Bhagwan Mahavir Prati Shraddhanjaliya
Author(s): Jain Mitramandal Dharmpur
Publisher: Jain Mitra Mandal

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Page 18
________________ विदेह की दूसरी राजधानी का नाम वरण तिलका था । जिसके नरेश सम्राट जीवन्धर के नाना गोविन्दराज थे। उत्तर कौशन अर्थान् अवध के राजा प्रसेनजित थे। जिनकी राजधानी श्रावस्ती थी । जिन्होंन बौद्ध धर्म को छोड़ कर जैनधर्म अंगीकार कर लिया था | प्रयाग के आसपास की भूमि वत्सदेश कहलाती थी। इसका राजा शतानीक' था, इसकी राजधानी कौशुम्बी थी। यह राजा महावीर स्वामी से भी पहले जैनी था। इसकी रानी मृगावती विशाली के जैन सम्राट महाराजा चेटक की पुत्री थी। इस लिये महाराजा शतानीक भगवान महावीर के मावसा थे और उनके धर्मोपदेश के प्रभाव से यह राजपाट त्याग कर जैन साधु हो गये थे। कुण्डग्राम के स्वामी राजा सिद्धार्थ थे, जो भगवान महावीर के पिता थे। ये भी वीर, महाप्रतापी और जैनी थे। इसी लिये महाराजा चेटक ने अपनी राजकुमारी त्रिरालादेवी का विवाह इनके साथ किया था। अवन्ति देश अर्थात् मालवा राज्य की राजधानी उज्जैन थी। इसका राजा प्रद्योत था, जो जैनी था । इसको वीरता का कालिदास ने भी अपने मेघदूत में उल्लेख किया है: "प्रद्योतस्य प्रियदुहितरं वत्साजोऽत्र जन्ह"। दर्शाण देश अर्थात् पूर्वी मालवा का राजा दशरथ था। इसका वंशसूर्य और धर्म जैन था, इसकी राजधानी हेरकच्छ थी, जैनधर्मी १-२ वोर, देहली, १७ अप्रैल १९४८, पृ०८ । ३ महाराजा शतानीक और उद्दयन चंद्रवंशी थे । इनके अस्तित्व का समर्थन वैष्णव धर्म का भागात भो करता है। जिसके अनुसार इनकी वंशावली बीर देहली (१७-४-४८) के पृष्ठ ८ पर देखिये। ४-६ ऊपर का फुटनोट नं० १-२ । ११४]

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