Book Title: Bhagvati Sutra Part 07 Author(s): Ghevarchand Banthiya Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh View full book textPage 5
________________ (4) न तो शरीर है, न इन्द्रियाँ, न कर्म, न भोग और न परिभ्रमण । ये सादि-अपर्यवसित एक ही स्थिति में स्थिर, अचल, अडोल, अकम्प और अवस्थित रहते हैं। जो संसार-समापनक-संसार में परिभ्रमण करने वाले-जीव हैं, वे ही विविध भावों एवं परिणामों में परिवर्तित होते रहते हैं । इनके शरीर हैं, इन्द्रियाँ हैं, कर्म हैं और भोग है । अजीव से सम्बन्ध, वेदना, निर्जरादि इन्हीं के हैं और पाप-पुण्य, धर्म-अधर्म, संयमतप आदि भी संसारी जीवों के ही है । इसीसे तो कहा है कि-"जीवों के आधार से अजीव हैं और जीव, कर्म-प्रतिष्ठित = कर्मों के आधार पर हैं, अजीव को जीव ने संग्रहित किया है और जीव को कर्मों ने संग्रहित किया है" ( श. १ उ. ६ भा. १ पृ. २७६ ) । संसारी जीवों का अजीव से सम्बन्ध होने के कारण ही उनमें कम्पन होता है (श. ३ उ. ३ भा. २ पृ. ६५६)। एकान्तवादी मत जो जीव का स्वरूप बतलाता है. वह 'असंसार-समापन्नक' जीवों का है । वे अजीव के सम्बन्धादि से रहित हैं। सिद्ध भगवंतों में मात्र उपयोग-ज्ञान-दर्शनोपयोग ही है । इसी को लक्ष्य कर एकान्तवादी कहा करते हैं कि-'आत्मा तो मात्र ज्ञातादृष्टा ही है, कर्ता-भोक्तादि नहीं। वह ज्ञान ही कर सकता है, कर्म नहीं ?' यह इनका एकान्तवाद है । परन्तु वे इस स्थिति पर भी स्थिर नहीं रहते ।. जब उनके सामने संसारसमापनक जीवों की स्थिति आती है, तो इसका कारण वे अज्ञान भाव--मिथ्या उपयोग बतलाते हैं । यहीं उनकी गाड़ी अटक जाती है । यदि वे अज्ञान को भी बात्मा का गुण मानते हैं, तो उनके सामने प्रश्न खड़ा होता है कि-- जब अज्ञान को भी आत्मा का गुण मानते हो, तो गुण को भी परिवर्तित मानना होगा, अन्यथा जो अज्ञानी है, वह सदैव अज्ञानी ही रहेगा। वह कभी ज्ञानी हो ही नहीं सकेगा । क्योंकि ज्ञान गुण तो जीव द्रव्य का ही है । द्रव्य में ही गुण है और गुणे में पर्याय हैं (उत्तरा. २८--६)। - यदि द्रव्य के गुण में परिवर्तन मानो, तो कर्म-परिणाम भी मानना ही पड़ेगा, जिसके उदय से अज्ञानी बना और क्षयोपशम से ज्ञानी हुआ । यदि कहा जाय कि ज्ञानअज्ञान तो पर्याय है, गुण नहीं, तो प्रश्न होगा कि पर्याय आई कहाँ से ? गुणों में से ही पर्याय उत्पन्न हुई । गुण से पर्याय सर्वथा भिन्न नहीं हो सकती। ' द्रव्य में गुण दो प्रकार के होते हैं, एक द्रव्य-सापेक्ष और दूसरे संयोगजन्य । द्रव्यसापेक्ष गुण, द्रव्य में सदा विद्यमान रहते हैं । ज्ञानादि गुण द्रव्य-सापेक्ष है । संयोगजन्य गुण अन्य द्रव्य के संयोग से होते हैं और संयोग सम्बन्ध रहने तक रहते हैं । ये संयोगजन्य गुण Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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