Book Title: Bhagvati Sutra Part 02 Author(s): Ghevarchand Banthiya Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh View full book textPage 4
________________ | निवेदन । सम्पूर्ण जैन आगम साहित्य में भगवती सूत्र विशाल रत्नाकर है, जिसमें विविध रत्न समाये हुए हैं। जिनकी चर्चा प्रश्नोत्तर के माध्यम से इसमें की गई है। प्रस्तुत द्वितीय भाग में तीन, चार, पांच और छह शतक का निरूपण हुआ है। प्रत्येक शतक के कितने उद्देशक हैं और उनकी विषय सामग्री क्या है? इसका संक्षेप में यहाँ वर्णन किया गया है - शतक ३ - तीसरे शतक में १० उद्देशक हैं, उनमें से पहले उद्देशक में चमर की विकुर्वणा, दूसरे उद्देशक में उत्पात, तीसरे में क्रिया, चौथे में देव द्वारा विकुर्वित यान को साधु जानता है? पाँचवें में साधु द्वारा स्त्री आदि के रूपों की विकुर्वणा, छठे में नगर सम्बन्धी वर्णन, सातवें में लोकपाल, आठवें में अधिपति, नववें में इन्द्रियों संबंधी वर्णन और दसवें में चमरेन्द्र की सभा संबंधी वर्णन है। शतक ४ - चौथे शतक में १० उद्देशक हैं। इनमें से पहले के चार उद्देशकों में विमान सम्बन्धी कथन किया गया है। पाँचवें से लेकर आठवें उद्देशक तक के चार उद्देशकों में राजधानियों का वर्णन है। नवमें उद्देशक में नैरयिकों का वर्णन है और दसवें उद्देशक में लेश्या सम्बन्धी वर्णन है। शतक ५ - पाँचवें शतक में १० उद्देशक हैं। प्रथम उद्देशक में सूर्य सम्बन्धी प्रश्नोत्तर हैं। ये प्रश्नोत्तर चंपानगरी में हुए थे। दूसरे उद्देशक में वायु सम्बन्धी वर्णन हैं। तीसरे उद्देशक में जालग्रन्थि का उदाहरण देकर वर्णन किया गया है। चौथे उद्देशक में शब्द सम्बन्धी प्रश्नोत्तर है। पाँचवें उद्देशक में छद्मस्थ सम्बन्धी वर्णन है। छटे उद्देशक में आयुष्य सम्बन्धी, सातवें उद्देशक में पुद्गलों के कंपन सम्बन्धी, आठवें उद्देशक में निर्ग्रन्थ-पुत्र अनगार सम्बन्धी, नववें उद्देशक में राजगृह सम्बन्धी और दसवें उद्देशक में चन्द्र सम्बन्धी वर्णन है, यह वर्णन चम्पा नगरी में किया गया था। शतक ६ - छठे शतक में १० उद्देशक हैं। इनमें क्रमशः १. वेदना, २. आहार, ३. महाआस्रव, ४. सप्रदेश, ५. तमस्काय, ६. भव्य, ७. शाली, ८. पृथ्वी, ६. कर्म और १०. अन्ययूथिक वक्तव्यता है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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