Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 1 Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti View full book textPage 4
________________ प्रस्तावना [प्रथम संस्करण से] अत्यन्त प्राचीन काल से ही. आकाशमण्डल मानव के लिए कौतूहल का विषय बना हुआ है । सूर्य और चन्द्रमा से परिचित हो जाने के पश्चात् ताराओं के सम्बन्ध में मानव को जिज्ञासा उत्पन्न हुई और उसने ग्रह एवं उपग्रहों के वास्तविक स्वरूप को अवंगत किया । जैन परम्परा बतलाती है कि आज से लाखों वर्ष पूर्व कर्मभूमि के प्रारम्भ में प्रथम कुलकर प्रतिश्रुति के समय में, जब मनुष्यों को सर्व-प्रथम सूर्य और चन्द्रमा दिखलाई पड़े तो वे इनसे सशंकित हुए और अपनी उत्कण्ठा शान्त करने के लिए उन्त प्रतिश्रुति नामक कुलकर मनु के पास गये। उक्त मनु नेहा सौर-जा सम्बन्धी सारी जानकारी नयी और ये ही सौरजगत् को ज्ञातव्य बातें ज्योतिष शास्त्र के नाम से प्रसिद्ध हुई। आगभिक परम्परा अनवच्छिन्न रूप से अनादि होने पर भी इस युग में ज्योतिषशास्त्र की नींव का इतिहास यहीं से आरम्भ होता है । मूलभूत सौर-जगत् के सिद्धान्तों के आधार पर गणित और फलित ज्योतिष का विकास प्रतिश्रुति मनु के सहस्रों वर्ष के बाद हुआ तथा ग्रह-नक्षत्रों की स्थिति के आधार पर भावी फलाफलों का निरूपण भी उसी समय से होने लगा। कतिपय भारतीय पुरातत्वविदों को यह मान्यता है कि गणित ज्योतिष की अपेक्षा फलित ज्योतिष का विकास पहले हुना है; क्योंकि आदि मानव को अपने कार्यों की सफलता के लिए समय शुद्धि की आवश्यकता होती थी। इसका सबसे बड़ा प्रभाव यही है कि ऋक, यजप और साम ज्योतिष में नक्षत्र और तिथि-शुद्धि का ही निरूपण मिलता है । ग्रह-णित की चर्चा सर्वप्रथम सूर्य सिद्धान्त और पञ्चसिद्धान्तिका में मिलती है । वेदांग ज्योतिष प्रमुख रूप से समय-शुद्धि का ही विधान करता है । ___ ज्योतिष के तीन भेद है--सिद्धान्त, सहिता और होरा । सिद्धान्त के भी तीन भेद किये गये हैं सिद्धान्त, तन्त्र और करण। जिन ग्रन्थों में सृष्ट्यादि से इप्ट दिन पर्यन्त अहगंण बनाकर ग्रह-गणित की प्रक्रिया निरूपति की गयी है, वे तन्त्र ग्रन्थ और जिनमें कल्पित इष्ट वर्ष का युग मानकर उस युग के भीतर ही किसी अभीष्ट दिन का अहर्गण लाकर ग्रहानयन की प्रक्रिया निरूपित की जाय,Page Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 ... 607