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बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - १ कढाये बिना कैसे जा सकते हैं ?' ऐसे थे उनके उद्गार !..
२-३ मुनिवरों द्वारा वनमालीदासभाई की उत्कृष्ट आराधना के बारेमें कुछ जानकारी मिली । बादमें विशेष जानकारी के लिए दि. २०-६१९९५के दिन हम हठीसींग की बाड़ीमें गये तब वे जिनपूजा कर रहे थे। पूजा के बाद जब वे उपाश्रयमें आये तब उनके साथ प्रश्नोत्तरी द्वारा उपरोक्त जानकारी प्राप्त की । अंतमें उन्होंने निवेदन किया कि यह सब जानकर कृपया आप मुझे अखबारमें प्रसिद्ध न करें !' कितनी निरभिमानिता एवं निःस्पृहता !..
प्रिय पाठक ! देखा न ! भावसार जातिमें जन्म पाये हुए वनमालीदासभाई जिनेश्वर भगवंत की आज्ञाओंका कैसा सुन्दर पालन करते हैं ?! कहा है कि -
"जाति-वेषका भेद नहीं, कहा मार्ग जो होय । साधे वह मुक्ति लहे, उसमें भेद न कोई ॥" "प्रभुका मारग है शूरोंका, नहीं कायरका काम"
प्रभु "महावीर" के संतान हम इस दृष्टांत को पढकर कर्मक्षय के लिए शूरवीर एवं धीर-गंभीर बननेका संकल्प करेंगे न ?!
शंखेश्वर तीर्थमें आयोजित अनुमोदना समारोह में वनमालीदासभाई पधारे थे । उनकी तस्वीर के लिए देखिए पेज नं. १२ के सामने ।
पता : वनमालीदासभाई जगजीवनदास भावसार हठीसींग की बाड़ी, अहमदाबाद (गुजरात) पिन : ३८०००४.
कंवल दो ही द्रव्यों से ७७ साल तक निरंतर एकाशन करनेवाला अडालजका ब्राह्मण
आज से २२ साल पूर्व सं. २०३३ की यह घटना है । धर्मचक्रतप प्रभावक प.पू. मुनिराज श्री जगवल्लभविजयजी म.सा. (हाल आचार्य)