Book Title: Bahuratna Vasundhara
Author(s): Mahodaysagarsuri
Publisher: Kastur Prakashan Trust

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Page 433
________________ ३५६ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - २ कहते हैं वह मनुष्य के लिए खतरा सिद्ध हुआ है । हालमें रोड़, उद्योग, मकान इत्यादिको विकास माना जाता है, लेकिन वास्तवमें तो वह अवनति का संकेत है। उत्तमभाई अपनी बात के समर्थन में कहते हैं कि, 'उद्योग शुरू होने पर विकास माना जाता है, लेकिन उद्योगों के कारण फैलते हुए प्रदूषण ने बहुत ही नुकशान पहुँचाया है । जहाँ अभी रोड़ नहीं बने हैं, उद्योगोंकी स्थापना नहीं हुई है वहाँ जाकर जाँच करो कि वहाँ के लोग कितने सुखी हैं । वहाँ कोई रोग नहीं होते। __बालकों को इस प्रकार की शिक्षा देने के हेतु को स्पष्ट करते हुए उत्तमभाई ने कहा था कि, “सैकडों साल पूर्व में चलती हुई नालंदा जैसी विद्यापीठे ही सच्चे अर्थ में विश्वविद्यालय थीं। इन विद्यापीठों में अध्ययन करने के लिए दूर दूरसे भी विद्यार्थी आते थे। अध्ययन पूरा होने के बाद विद्यार्थी हिम्मतपूर्वक हर परिस्थिति का सामना कर सकता था । आज डिग्री प्राप्त करने के बाद भी विद्यार्थी नौकरी के लिए लाचार होता है। मेरी भावना नालंदा जैसा गुरुकुल निर्माण करने की है। रूपयों की कमी नहीं है, किन्तु आजकी शिक्षा के गैरफायदे और गुरुकुल की शिक्षा के लाभ लोग समझें यह बहुत जरूरी है। तात्कालिक कोई फलश्रुति दृष्टिगोचर नहीं होगी किन्तु समय जाने पर अवश्य इसका अच्छा परिणाम मिलेगा ही।" बालकों को स्कूल के शिक्षण की बजाय गुरुकुल की पद्धति से शिक्षण देने का निर्णय तो इस घर के बुजुर्गों का था, किन्तु जिनके लिए ऐसा निर्णय किया गया था वे बालक क्या कहते हैं वह भी महत्त्व का हैं । सातवीं कक्षा तक स्कूल का शिक्षण लेनेवाला अखिल स्कूल की शिक्षा को परीक्षालक्षी मानता है और अभी जो पढ रहा है वह ही जीवनलक्षी होने का उसका दावा है । अखिल को अध्ययन पूरा होने के बाद दीक्षा लेने की भावना है, जब कि १०वीं कक्षा तक पढनेवाले आशिष को व्यवसाय करने की इच्छा है ।। अपने मामा के घर पढने के लिए आये हुए मुंबई के विशाल को शुरूमें संस्कृत पढना कठीन लगता था लेकिन अब सब सरल हो गया

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