Book Title: Bahuratna Vasundhara
Author(s): Mahodaysagarsuri
Publisher: Kastur Prakashan Trust

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Page 478
________________ 401 बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - 2 अपने नाम को सार्थक बना रहे हैं / सुश्राविका श्री पानबाई को बाल्यावस्था से ही सत्संग के द्वारा एवं कच्छ-डुमरा में कबुबाई जैन पाठशाला में धार्मिक एवं संस्कृत का अध्ययन करने से संयम की भावना जाग्रत हुई थी, लेकिन माँ-बाप की इकलौती संतान होने से संयमके लिए अनुमति नहीं मिली तब उपर्युक्त प्रकार से अपनी प्रत्येक संतान को वैराग्य की प्रेरणा देकर रत्नकुक्षि बनी हैं। आदर्श श्राविका पानबाई ने भव्य पुरुषार्थ द्वारा अपने वयोवृद्ध माँ-बाप (देवकांबाई देवजीभाई) को धर्म में जोड़कर, उनसे वर्षीतप आदि करवाकर, श्रावक के व्रतों का स्वीकार करवाया / इस तरह माँ-बाप की द्रव्य-भाव सेवा की और अंत समय में भी अनुमोदनीय आराधना करवायी। स्वयं भी नियमित जिनपूजा, उभय काल प्रतिक्रमण, श्रावक के 12 व्रतों का स्वीकार, सत्संग, स्वाध्याय सद्वांचन, वर्षीतप-बीसस्थानक तप-वर्धमान तप की 45 ओलियाँ, नवपदजी की ओलियाँ इत्यादि तपश्चर्या, साधु-साध्वीजी भगवंतों की उल्लसित भाव से वैयावच्च, व्याख्यान श्रवण, प्रभुभक्ति और रत्नत्रयी (सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक् चारित्र) की संदर आराधना द्वारा एवं संयम के मनोरथ द्वारा जीवन को धन्य बना रही हैं। इस दृष्टांत में से प्रेरणा लेकर अन्य श्राविकाएँ-माताएँ भी अपने जीवन को धर्ममय बनाकर अपनी संतानोंमें भी धार्मिक सुसंस्कारों का सिंचन करें यही शुभाभिलाषा / * शंखेश्वर तीर्थमें आयोजित अनुमोदना-बहुमान समारोह में शुश्राविका श्री पानबाई भी पधारी थीं / उनकी तस्वीर के लिए देखिए पेज नं. 22 के सामने / पत्ता : पानबाई रायसी गाला Clo. दीपककुमार रायसी गाला, मु.पो, लायजा, ता. मांडवी कच्छ (गुजरात). पिन : 370475. (अनुमोदक : मुनिश्री देवरत्नसागरजी) बहला वसंधरा - 2-26

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