Book Title: Bahuratna Vasundhara
Author(s): Mahodaysagarsuri
Publisher: Kastur Prakashan Trust

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Page 472
________________ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - २ ३९५ तपस्विनी सुश्राविका के हाथ से खातमुहूर्त हो तो अच्छा । उन्होंने कमलाबहन को इस पुण्य कार्य के लिए विज्ञप्ति की । कमलाबहन ने उनकी विज्ञप्ति का स्वीकार किया, लेकिन ऐसा महान लाभ चढावे की बोली बोले बिना ही अपने को मिलने कारण उन्होंने दूसरी बार १०८ अठ्ठम करने की अपनी भावना श्रीसंघ के समक्ष व्यक्त की । सभी उनकी ऐसी उत्तम भावना की अनुमोदना करने लगे । बादमें अध्यवसायों में शुभ भावों की अभिवृद्धि होने पर उन्होंने १०८ अठ्ठम के बदले में ४॥ सालमें १०८ अठाई कर दी । श्री संघने उनका यथोचित बहुमान किया था । हालमें कमलाबहन श्री सिद्धाचलजी की १०८ अठ्ठम कर रही हैं । इससे पहले उन्होंने अपने जीवनमें उपरोक्त तप के अलावा निम्नोक्त प्रकार की तपश्चर्याएं की हैं । (१) अठ्ठम से वर्षीतप (२) छठु से वर्षीतप (३) उपवास से वर्षीतप (४) २२९ छठ्ठ (५) सिद्धितप (६) श्रेणी तप (७) समवसरण तप (८) सिंहासनतप (९) भद्रतप (१०) महाभद्र तप (११) ३ उपधान (१२) ६८ उपवास (१३) बीस स्थानक तप (१४) चत्तारि-अठ्ठ-दस-दोयतप (१५) ८-९-१०-११-१२-२१-३० उपवास (१६) वर्धमान तप (१७) क्षीर समुद्र तप (१८) ज्ञानपंचमी तप (१९) मौन एकादशी (२०) रोहिनी तप (२१) पूर्णिमा तप (२२) लक्ष्मीतप (२३) १३ काठिया निवारण तप (२४) नवपदजी की ओलियाँ (२५) प्रतिदिन ६-७ समायिक (२६) हररोज १०० लोगस्सका काउस्सग्ग .... इत्यादि । कमलाबहन की तपश्चर्या की भूरिशः हार्दिक अनुमोदना। पत्ता : कमलाबहन घेरवचंदजी कयरिया मिश्रा हाउस, पांचवीं मंजिल, रुम नं १३, ४ था रोड, खार (वेस्ट) मुंबई - ४०००५२. फोन : ६०४४९५८

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