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बहुरत्ना वसुंधरा : भाग
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दृढ सम्यग्दर्शन प्रेमी श्रीनेमिचंदजी कोठारी
"गोर महाराज ! शादी की विधि करवाने की आपकी फी क्या है ? देखिए, आज शामको जो शादी होनेवाली है उसकी विधिमें आप मुझे किसी देव-देवी आदि को पानी चढाना, कंकुका तिलक करना, चावल लगाना इत्यादि का आग्रह नहीं करना । आप अपनी विधि के मुताबिक श्लोक वगैरह बोलते रहना, मैं अपने मनमें मुझे जो बोलना या करना होगा वह करुँगा । आपको आपकी फीस से दुगुनी राशि मिल जायगी !"... महाराष्ट्र के एक शहरमें से एक राजस्थानी युवक बारात लेकर शादी के लिए आया था । उसके हृदयमें जैनत्व का गौरव था । सुदेवसुगुरु- सुधर्म को ही वंदनीय - पूजनीय के रूपमें स्वीकारना ऐसा उसका सम्यक्त्व उसको समजा रहा था। शादी की विधिमें किसी अन्य देव - देवी का पूजन भूल से भी नहीं करना पड़े इसके लिए गोर महाराज को शादी से पहले ही बुलाकर सारी बात समझा दी ।
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'मुझे मेरी फीस से काम है, वरराजा पूजन करे या नहीं उससे मुझे क्या लेना देना ?' ऐसी समझवाले गोर महाराजने इस बात का सहर्ष स्वीकार कर लिया ।
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योग्य समयमें शादी की विधि का प्रारंभ हुआ । गोर महाराज संगीतमयी भाषामें शादी की विधि के श्लोक आदि बोलने लगे ।' 'वर कन्या कंकुसे पूजा करो चावल चढाऔ पानी की अंजलि चढाओ विधि करने लगी, लेकिन ? वे तो दिल में इष्टदेव का
इत्यादि शब्दों के अनुसार कन्या तो सभी वरराजा तो इन शब्दों को सुनते ही कहाँ थे स्मरण करने में लीन थे ।
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अपनी सूचनाओं का पालन नहीं होने से गोर महाराज नाराज हुए ऊँची आवाज से बार बार सूचना देने पर भी वरराजा उसका पालन नहीं करते थे इसलिए वे गुस्से में आकर वरराजा को धमकाने लगे ! वरराजाने