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बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - २ वे तीनों टाईम अत्यंत भावपूर्वक विज्ञप्ति करके अत्यंत अहोभाव से सुपात्रदान का लाभ लेते हैं।
मुंबईमें 'बोम्बे अस्पताल' में उनका अनमोल योगदान है। प्रत्येक मरीजों को वे नवकार महामंत्रका कार्ड देते हैं और उसका जप करने की प्रेरणा करते हैं । स्वयं एवं उनके परिवार के सदस्य भी मरीज की देखभाल करने के लिए जाते हैं तब नवकार महामंत्र सुनाते हैं । मरीजों के लिए भोजन की व्यवस्था भी वे अपने घर से करवाते हैं । ऐसी निःस्वार्थ सेवावृत्तिके कारणसे वे "बाबुभाई बोम्बे होस्पीटलवाले" के रूपमें प्रख्यात हो गये हैं । अस्पताल के डॉक्टर एवं स्यफ भी उनको "देवदूत' के रूपमें पहचानते हैं।
___ अपने मकानको बनानेवाले मजदूरों को उन्होंने बक्षिस के रूपमें सुवर्ण मुद्रा देकर उनका आभार मानते हुए बाबुभाईने कहा कि- "आप लोगोंने अगर मेरा घर बनाया नहीं होता तो मैं कहाँ रहता ? आप तो मेरे अत्यंत उपकारी हो"।
इस तरह जीवमात्रमें शिवत्वका दर्शन करने वाले बाबुभाई सभीके दिलमें बस जायें तो उसमें आश्चर्य कैसा !!... उनके द्वारा उपकृत हुए अनेक मरीजोंने खत लिखकर अपने हृदयोद्गार अभिव्यक्त किये हैं, उनमें से एक व्यक्तिने गुजराती भाषामें काव्य के रूपमें बाबुभाई के प्रति कृतज्ञता भाव अभिव्यक्त किया है जो निम्नोक्त प्रकारसे है --
"दिल जेनुं दरियाव छे, जेना गुणोनो नहीं पार । ए बाबुभाई छेड़ाना चरणमां, वंदन करुं हुं वारंवार ॥१॥ सेवा करे छे खंतथी, भले ए रंक होय के राय । सवार-सांज नित्य ए, दर्दीने मलवा जाय ॥२॥ साधु बनवू सहेल छे, बाबु बनवू मुश्केल । निखालसता नयणे झरे, जेना मनमां नथी मेल ॥३॥ मलकता होय ए मानवी, जवाब आपे मीठो । जीवतो जागतो भगवान, में बाबुभाईमां दीठो ॥४॥ निराधारनो आधार छे, अने गरीबोनो दातार ।