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बहुरत्ना वसुंधरा : भाग २
विशिष्ट धर्मभावना, मैत्रीभावना और व्यवहारकुशलता का परिणाम है 1 धर्मचर्चा के दौरान वे अपने परम उपकारी गुरुदेव श्री पन्यासजी महाराजको अत्यंत बहुमान पूर्वक बार बार याद करते हैं ।
अगर प्रत्येक संघोंमें हीरालालभाई जैसे धर्मनिष्ठ कुशल सुश्रावकों का नेतृत्व संप्राप्त हो जाय तो जिनशासन का कितना जय जयकार हो जाय !!!...
हीरालालभाई के ज्येष्ठ सुपुत्र सुरेशभाई नारणपुरा चार रस्ता जैनमंदिर के सामने रहते हैं । वहाँ संघमें जो आयंबिलखाता है उसका संपूर्ण आर्थिक सहयोग सुरेशभाई की ओर से होता है, इतना ही नहीं किन्तु आयंबिल के तपस्वियों की भक्ति वे स्वयं करते हैं ।
ऐसे विशिष्ट श्राद्धवर्यों को तैयार करनेवाले प. पू. पंन्यासजी महाराजको अनंतशः वंदना एवं श्राद्धवर्य श्री हीरालालभाई की आराधना की हार्दिक अनुमोदना ।
पता : विधिकार श्री हिरालालभाई मणिलाल भाई शाह ७७, गिरघरनगर, शाहीबाग, अहमदाबाद - ३८०००४.
अठ्ठम के पारणे अठ्ठम तप के साथ गिरिराज की ११२ ९९ यात्रा करनेवाले अप्रमत्त आराधक दंपती बचुबाई टोकरसीभाई देठिया
(सामान्यतः धर्मश्रेत्र में श्रावकों की अपेक्षा से श्राविकाओं की 'मोनोपोली' विशेष प्रमाणमें दृष्टिगोचर होती है । कई श्रावक अपनी धर्मपत्नी को ऐसा भी कहते हैं कि - "तू भले धर्म कर, मुझे तो अभी व्यावसायिक प्रवृत्तिओं के पीछे धर्म करने की फुरसत ही कहाँ है ? तू धर्म करेगी उससे मुझे भी लाभ होगा ही " ।
किन्तु इसमें अपवाद रूप कुछ ऐसे भी विरल दंपती श्रावक-श्राविका होते हैं कि जो प्रत्येक आराधना दोनों साथमें मिलकर ही करते हैं। ऐसे विरल दंपतिओं में कच्छ-लायजा के अ. सौ. बचुबाई टोकरसीभाई एवं टोकरसीभाई