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बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - २ था। यातायात में समय एवं जिनालयादि के अभाव के कारण सामायिक
और जिनपूजा करना संभव नहीं होता था । सच्चे धर्मात्मा धीरुभाई के हृदयमें यह बात उचित न लगी । आखिर उन्होंने प्रखर प्रवचनकार पू. मुनिराज श्री रत्नसुंदरविजयजी म.सा. (हाल आचार्य) के पास १४ साल पहले अभिग्रह लिया कि 'जिस दिन सामायिक या जिनपूजा नहीं होगी उस दिन प्रायश्चित के रूप में १०० रूपये जिनमंदिर के कोष में डालूंगा'।
प्रथम वर्षमें २५० दिन सामायिक/जिनपूजा बिना गये । दूसरे वर्ष १००० रूपये प्रायश्चित्त के रूपमें जिनमंदिर के कोष में डालने का अभिग्रह लिया तब सालमें केवल २५ दिन सामायिक/जिनपूजा नहीं हुई । तीसरे साल से १० हजार रूपयों का दंड निर्धारित किया तब केवल ३ ही दिन सामायिक/जिनपूजा के बिना गये ! धीरूभाई की धर्मपत्नी वर्षाबहनने सामायिक न होने पर अठ्ठम तप करने का अभिग्रह प. पू. आ. भ. श्री यशोवर्मसूरिजी म. सा. के पास ग्रहण किया है !!!... .
अब धीरुभाई इतनी सावधानी से बरतते हैं कि विदेशयात्रा के लिए टिकट भी इस तरह लेते हैं कि जिससे बीच के स्टेशन पर उतरकर प्लेटफोर्म पर बैठकर भी सामायिक कर लेते हैं और साथमें रखे हुए जिनबिंब की पूजा करने के बाद ही आगे बढ़ते हैं .....
जिनभक्ति और सामायिक के साथ साथ जीवदया के सत्कार्यों में भी वे गुप्तरूप से अच्छी राशि का सद्व्यय करते रहते हैं ।
धीरुभाई की एक बहनने तीर्थप्रभावक प.पू.आ.भ. श्री : विजयविक्रमसूरीश्वरजी म.सा. के समुदाय में दीक्षा ली है । तपस्वी सा. श्री सुभद्राश्रीजी की प्रशिष्या सा. श्री कल्पज्ञाश्रीजी के रूपमें सुंदर संयमका पालन करती हैं । .
धीरुभाई के अद्भुत दृष्टांत में से प्रेरणा लेकर सभी भावुकात्माएँ सामायिक और जिनपूजा को अपने जीवन में आत्मसात् करें यही शुभाभिलाषा।