Book Title: Atmonnati Digdarshan
Author(s): Vijaydharmsuri
Publisher: Yashovijay Jain Granthmala

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Page 9
________________ ॥ अह॥ आत्मोन्नति-दिग्दर्शन। OOOO00 संसार में समस्त प्राणी सुख के अभिलाषी हैं। कोई भी प्राणी दुःख की इच्छा नहीं करता है । तो भी मनुष्य दुःखसे नहीं बचता है, इस का कारण इतना ही है किसुख प्राप्ति के जो २ साधन हैं, उन साधनों को बह प्राप्त नहीं करता है । और दुःखदायक साधनोंसे दूर नहीं र. हता है। इसी का परिणाम है कि मनुष्यों को यथार्थवास्तविक सुख नहीं प्राप्त होता है। इस सुख की पराकाष्टा तक पहुंचना, इसी का नाम है आत्मोन्नति । ' आत्मोन्नति ' अर्थात् आत्मा की उन्नति । दूसरे शब्दों में कहें तो आत्मा के मूल स्वरूप को जाननाअथवा आत्मा को स्वाधीन करना, इस का नाम ही आत्मोन्नति है। - इस समय यह विचारना बहुत ही आवश्यक है किजिस 'आत्मा' की उन्नति के लिये प्रयत्न करना है, वह 'आत्मा' ऐसा कोई पदार्थ है या नहीं । क्यों कि Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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