Book Title: Atmonnati Digdarshan
Author(s): Vijaydharmsuri
Publisher: Yashovijay Jain Granthmala

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Page 12
________________ (१०) क्योंकि - स्वर्ग, पाप, पुण्यादि परोक्ष पदार्थों का जो अभाव तुम्हें सिद्ध करना है वह अनुमान करे वगर नहीं कहा जा सकता है, ऐसा न्याय है । दूसरी बात प्रत्यक्ष प्रमाण को भी प्रमाणभूत मानने में क्या प्रमाण है ? यदि कोई व्यक्ति ऐसा प्रश्न करे, तो आपको कुछ भी उत्तर देना ही होगा । और जो उत्तर आप देंगे, उसीका नाम 'अनुमान है | जब तुम्हारे ही इस मन्तव्य से अनायास ही इस प्रकार अनुमान प्रमाण ' सिद्ध होवेगा, उस समय आस्तिक लागों के माने हुए ' आत्मा के अस्तित्व का निषेध करने के लिए सचमुच ही कमनसीब ही बनोगे । प्रमाण 39 अब पंचभूत से आत्मा की उत्पत्ति माननेवालों से पूछेंगे कि " एक साथ पंचभूतों से आत्मा की उत्पत्ति मानते हो, या एक एक से पृथक् पृथकू ? इसका यह उत्तर दें कि "पांचोंसे ही उत्पत्ति मानते हैं" तो, विलक्षण गुणों से युक्त और विलक्षण स्वभाववाले पांचभूतो (पृथ्वी) जल, अग्नि, वायु और आकाश ) से आत्मा' की उत्पत्ति सिद्ध नहीं होगी। क्योंकि कारण के अनुकूल ही कार्य होता है, ऐसा सामान्य नियम है। यदि साहसी बनकर ऐसा कहोगे कि-" पांचों के समुदाय से विलक्षण स्वभाव और विलक्षण गुणवाला 'आत्मा' पैदा होगा, " Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat * www.umaragyanbhandar.com

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