Book Title: Atmonnati Digdarshan
Author(s): Vijaydharmsuri
Publisher: Yashovijay Jain Granthmala

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Page 33
________________ ( ३१ ) उसी प्रकार से इस राग-द्वेष का गांठ के समीप आये हुवे जावों में से कइएक प्राणी राग-द्वेष रूपी महाचोर के भय से पीछे हठते हैं । कतिपय प्राणी अमुक काल पर्यन्त वहीं निवास करते हैं। अर्थात् यथाप्रवृत्ति परिणाम में हो निवास करते हैं । जब कि-कइ एक राग-द्वेष को परास्त कर के अपूर्वकरण परिणाम, जो परिणाम कभी प्राप्त नहीं हुआ ह, कर के आगे बढ़ कर जहाँ पर शुद्ध परिणाम रू! मंदिरों की श्रेणी रही हुई है, वैसे सम्यक्त्व शहर में पहुँच कर अमूल्य चारित्र रत्न का संग्रह करते हैं । यहाँ कोई शंका करे कि-अभव्य यथाप्रवृत्तिकरण रूप परिणाम में कौन से हेतु से आते हैं ? इसके उत्तर में समझना चाहिये कि-लोकऋद्धि को देख कर देवत्वादिक मुख की अभिलाषा से वे द्रव्यचारित्र का अङ्गीकार करते है । इतना ही नहीं परन्तु उसका (द्रव्यचारित्र का ) पौद्गलिक सुख के वास्ते पालन भी करते हैं । और पालन कर के देवलोक में नववे ग्रैवेयक तक जाते हैं । परन्तु आत्मीय कल्याण के अभिलाषी नहीं होने के कारण से अभव्य जीव अपूर्वकरण रूप विशुद्ध अध्यवसाय का भागी नहीं होता है । जब कि भव्य जीव आगे बढ़ कर अपूर्वकरणरूप शुद्ध परि Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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