Book Title: Atmonnati Digdarshan
Author(s): Vijaydharmsuri
Publisher: Yashovijay Jain Granthmala

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Page 19
________________ (१७) शास्त्रकारोंने मोहनीयकर्म के नाश से समस्त कर्मों का नाश माना है। उसके वास्ते दृष्टान्त दिया जाता है कितालवृक्ष के शिर पर सुई लगाने से तालवृक्ष स्वयं सूख जाता है। उसी प्रकार मोहनीय कर्म के नाश से समस्त कर्मों का नाश हो जाता है। पांचबा आयुष्य कर्म निगड़ (बेडी') के समान है । जिस प्रकार बेड़ी में फंसा हुआ पाणी भागने के लिये असमर्थ होता है, उस प्रकार आयुष्य कर्म के जोरसे जीव नरक, तिर्यच, मनुष्य अथवा देवगति में जा कर स्वस्थिति अनुसार निवास करके भवान्तर में उपार्जन किये हुए पुण्य-पापानुसार सुख अथवा दुःख सहन करता है। आयुष्य कर्म के दो भेद हैं सोपक्रम आयुष्य कर्म और निरुपक्रम आयुष्य कम। सोपक्रम, अर्थात् किसी भी कारण से आयुष्य की मूल स्थिति में न्यूनता होना । निरुपक्रम, अर्थात् जितना आयुष्य बांधा हो, उतना ही भोगना पड़े । निरुपक्रम आयुष्य देव और नारकी के जीवों को, तथा मनुष्य गति में चरमशरीरी को तथा युगलियों को होता है। नामकर्म चित्रकार के सदृश है। चित्रकार में जैसी कला होती है, वैसा ही रूप चित्रित किया जाता है । उसी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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