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(८) । इस विषय में आस्तिकों और नास्तिकों के आपस में भारी मतभिन्नता है। याने समस्त आस्तिक दर्शनकार 'आत्मा' पदार्थ की सत्ता, अर्थात् ' अस्तित्व ' का प्रतिपादन करते हैं। और नास्तिक मतवाले 'जड़वाद ' को मान कर के 'आत्मवाद ' का तिरस्कार करते हैं । जैसे कि-चार्वाक, सौत्रान्तिक, वैभाषिक इत्यादि पंच महाभूतसे तथा पंच स्कंध आदिसे अतिरिक्त ' आत्म ' पदार्थ को बिलकूल नहीं मानते हैं। उन में से चार्वाकों का मन्तव्य सामान्य रीत्या इस प्रकार का है ।
___ " पंचभूत में से एक नूतन शक्ति उत्पन्न होती है, जो चलनादि क्रिया करती है । जब इन पांच भूतों में से किसी एक भूत की शक्ति क्षीण होती है तब लोग 'मृत' अर्थात् ' मर गया ' ऐसा व्यवहार करते हैं। जिस तरहसे गुड़, आटा, ताड़ी आदि पदार्थों के संयोग से मद्य शक्ति का प्रादुर्भाव होता है, और जिस प्रकार जळ में बुलबुले पैदा होते है, और उसी में नाश होते हैं, उसी प्रकार पंच महाभूत में से एक 'अमुक शक्ति ' उत्पन्न होती है,
और वह उसी में नष्ट हो जाती है। और उस ही शक्ति को धूर्त लोग 'आत्मा' मान कर लोगों को परलोक का भय उत्पन्न कराते हैं - नरक आदि का मिथ्या
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