Book Title: Ashtapahud
Author(s): Kundkundacharya, 
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 344
________________ अथ लिंगपाहुड ७ अथ लिंगपाहुड की वचनिका का अनुवाद लिखते हैं(दोहा) - जिनमुद्राधारक मुनी निजस्वरूपकूं ध्याय । कर्म नाशि शिवसुख लियो बंदूं तिनके पांय ।। १ ।। इसप्रकार मंगल के लिए जिन मुनियों ने शिवसुख प्राप्त किया उनको नमस्कार करके श्रीकुन्दकुन्द आचार्यकृत प्राकृत गाथाबंध लिंगपाहुडनामक ग्रंथ की देशभाषामय वचनिका का अनुवाद लिखा जाता है, प्रथम ही आचार्य मंगल के लिए इष्ट को नमस्कार कर ग्रन्थ करने की प्रतिज्ञा करते हैं काऊण णमोकारं अरहंताणं तहेव सिद्धाणं । वोच्छामि समणलिंगं पाहुडसत्थं समासेण ॥ १ ॥ कृत्वा नमस्कारं अर्हतां तथैव सिद्धानाम् । वक्ष्यामि श्रमणलिंगं प्राभृतशास्त्रं समासेन । । १ । । अर्थ - आचार्य कहते हैं कि मैं अरहन्तों को नमस्कार करके और वैसे ही सिद्धों को नमस्कार करके तथा जिसमें श्रमणलिंग का निरूपण है इसप्रकार पाहुडशास्त्र को कहूँगा । भावार्थ - इस काल में मुनि का लिंग जैसा जिनदेव ने कहा है उसमें विपर्यय हो गया, उसका निषेध करने के लिए यह लिंगनिरूपण शास्त्र आचार्य ने रचा है, इसकी आदि में घातिकर्म का नाश कर अनंतचतुष्टय प्राप्त करके अरहंत हुए इन्होंने यथार्थरूप से श्रमण का मार्ग प्रवर्ताया और कर नमन श्री अरिहंत को सब सिद्ध को करके नमन । संक्षेप में मैं कह रहा हूँ, लिंगपाहुड शास्त्र यह ।। १ ।।

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