Book Title: Ashtapahud
Author(s): Kundkundacharya, 
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 370
________________ 3३२ अष्टपाहुड जीवदया दमः सत्यं अचौर्यं ब्रह्मचर्यसंतोषौ । सम्यग्दर्शनं ज्ञानं तपश्च शीलस्य परिवारः ।।१९।। अर्थ – जीवदया, इन्द्रियों का दमन, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य, संतोष, सम्यग्दर्शन, ज्ञान, तप - ये सब शील के परिवार हैं। भावार्थ - शील स्वभाव तथा प्रकृति का नाम प्रसिद्ध है। मिथ्यात्वसहित कषायरूप ज्ञान की परिणति तो दुःशील है इसको संसारप्रकृति कहते हैं, यह प्रकृति पलटे और सम्यक् प्रकृति हो वह सुशील है इसको मोक्षसन्मुख प्रकृति कहते हैं। ऐसे सुशील के 'जीवदयादिक' गाथा में कहे वे सब ही परिवार हैं, क्योंकि संसारप्रकृति पलटे तब संसारदेह से वैराग्य हो और मोक्ष से अनुराग हो तब ही सम्यग्दर्शनादिक परिणाम हों, फिर जितनी प्रकृति हो वह सब मोक्ष के सन्मुख हो, यही सुशील है। जिसके संसार का अंत आता है, उसके यह प्रकृति होती है और यह प्रकृति न हो तबतक संसारभ्रमण ही है, ऐसे जानना ।।१९।। आगे शील ही तप आदिक हैं ऐसे शील की महिमा कहते हैं - सीलं तवो विसुद्धं दंसणसुद्धी य णाणसुद्धी य। सीलं विसयाण अरी सीलं मोक्खस्स सोवाणं ।।२०।। शीलं तप: विशुद्ध दर्शनशुद्धिश्च ज्ञानशुद्धिश्च । शीलं विषयाणामरिः शीलं मोक्षस्य सोपानम् ।।२०।। अर्थ – शील ही विशुद्ध निर्मल तप है, शील ही दर्शन की शुद्धता है, शील ही ज्ञान की शुद्धता है, शील ही विषयों का शत्रु है और शील ही मोक्ष की सीढ़ी है। भावार्थ - जीव-अजीव पदार्थों का ज्ञान करके उसमें से मिथ्यात्व और कषायों का अभाव करना यह सुशील है, यह आत्मा का ज्ञानस्वभाव है, वह संसारप्रकृति मिटकर मोक्षसन्मुख प्रकृति हो तब इस शील ही के तप आदिक सब नाम हैं - निर्मल तप, शुद्ध दर्शन ज्ञान, विषय-कषायों का मेटना, मोक्ष की सीढ़ी – ये सब शील के नाम के अर्थ हैं, ऐसे शील के माहात्म्य का वर्णन किया है और यह केवल महिमा ही नहीं है, इन सब भावों के अविनाभावीपना बताया है ।।२०।। आगे कहते हैं कि विषयरूप विष महा प्रबल है - शील दर्शन-ज्ञान शुद्धि शील विषयों का रिपू। शील निर्मल तप अहो यह शील सीढ़ी मोक्ष की ।।२०।।

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