Book Title: Ashtapad Maha Tirth 01 Page 177 to 248
Author(s): Rajnikant Shah, Kumarpal Desai
Publisher: USA Jain Center America NY

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Page 17
________________ Shri Ashtapad Maha Tirth भगवतपुराण का यह श्लोक ऋषभ संस्कृति को दर्शाता है साथ ही उनके अति प्राचीन होने का भी संदेश देता है। ऋषभदेव को सिर्फ जैन परम्परा ही नहीं वरन् वैदिक परम्परा भी उनको शलाका पुरुष मानती है। वेदों और पुराणों में उनके उल्लेख इसकी निश्चित तौर पर पुष्टि करते हैं और अनेकों साहित्यिक प्रमाण इस विषय में आज भी उपलब्ध हैं। ऋग्वेद व अथर्ववेद में ऐसे अनेक मन्त्र हैं, जिनमें ऋषभदेव की स्तुति अहिंसक, आत्मसाधकों में प्रथम, अवधूत चर्या के प्रणेता तथा मयों में सर्वप्रथम अमरत्व अथवा महादेवत्व पाने वाले महापुरुष के रूप में की गई है। एक स्थान पर उन्हें ज्ञान का आगार तथा दुःखों व शत्रुओं का विध्वंसक बताते हुए कहा गया है : "असूतपूर्वां वृषभो ज्यायनिभा अस्य शुरुषः सन्तिपूर्वीः। दिवो न पाता विदथस्यधीभिः क्षत्रं राजाना प्रदिवोदधाथे ।।" -ऋग्वेद, ५-३८ जिस प्रकार जल से भरा हुआ मेघ वर्षा का मुख्य स्रोत है और जो पृथ्वी की प्यास को बुझा देता है, उसी प्रकार पूर्वी अर्थात् ज्ञान के प्रतिपादक वृषभ महान् हैं। उनका शासन वरद है। उनके शासन में ऋषि-परम्परा से प्राप्त पूर्व का ज्ञान आत्मा के क्रोधादि शत्रुओं का विध्वंसक हो। दोनों (संसारी और शुद्ध) आत्माएँ अपने ही आत्मगुणों में चमकती हैं; अतः वे ही राजा हैं, वे पूर्ण ज्ञान के आगार हैं और आत्म-पतन नहीं होने देते। ऋग्वेद के एक दूसरे मन्त्र में उपदेश और वाणी की पूजनीयता तथा शक्ति सम्पन्नता के साथ उन्हें मनुष्यों और देवों में पूर्वयावा माना गया है : "मखस्य ते तीवषस्य प्रजूतिमियभिं वाचमृताय भूषन् । इन्द्र क्षितीमामास मानुषीणां विशां दैवी नामुत पूर्वयावा ।।" -ऋग्वेद, २।३४।२ अर्थात् - हे आत्मदृष्टा प्रभो! परम् सुख पाने के लिये मैं तेरी शरण में आता हूँ, क्योंकि तेरा उपदेश और वाणी पूज्य और शक्तिशाली हैं। उनको अब मैं धारण करता हूँ। हे प्रभो ! सभी मनुष्यों और देवों में तुम्हीं पहले पूर्वयावा (पूर्वगत् ज्ञान के प्रतिपादक) हो। यजुर्वेद में लिखा है वेदाहमेतं पुरूषं महान्तमादित्यवर्ण तमसः पुरस्तात् । तमेव निदित्वाति मृत्युमेति नान्य पंथा विद्यतेऽयनाय।। यजुर्वेद अ.३१, मंत्र ८ मैंने उस महापुरुष को जाना है, जो सूर्य के समान तेजस्वी, अज्ञानादि अन्धकार से दूर है। उसी को जानकर मृत्यु से पार हुआ जा सकता है, मुक्ति के लिए अन्य कोई मार्ग नहीं है। 'ॐ नमोऽर्हन्तो ऋषभो' (यजुर्वेद) अर्थात् - अर्हन्त नाम वाले (वा) पूज्य ऋषभदेव को प्रणाम हो। "ॐ ऋषभंपवित्रं पुरुहूतमध्वरं यज्ञेषु नग्नं परमं माहसंस्तुतं वारं शजयंतं पुशुरिंद्रमाहुरिति स्वाहा। उत्रातारमिद्रं ऋषभंवदंति अमृतारमिन्द्रहवे सुगतं सुपार्श्वमिन्द्रहवे शकमजितं तदूर्द्धमान पुरुहूतमिंद्रमाहुरिति - 153 - - Adinath Rishabhdev and Ashtapad

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