Book Title: Ashtapad Maha Tirth 01 Page 177 to 248
Author(s): Rajnikant Shah, Kumarpal Desai
Publisher: USA Jain Center America NY

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Page 29
________________ Shri Ashtapad Maha Tirth the Ogam writings not being understood by the priests, were believed to be magical and were destroyed wherever they were found. patrick is said to have burnt 300 books in those letters." "The word Agams or Ogam is mysterious" according to Sri William Jones "These Ogham Character" were the first invented letters.......the Druids of Ireland did not pretend to be the inventors of the secret system of letters but said that they inherited them from the most remote antiquity." प्रख्यात घुमक्कड़, परिव्राजक, प्राचीन तंत्रशास्त्र के ज्ञाता एवं शैवागम के विशेषज्ञ विद्वान् श्री प्रमोदकुमार चटर्जी का कहना है- "तन्त्र धर्म भारत के बाहर से आया हुआ है। शिव तिब्बत के पार्वत्य अंचल में रहा करते थे। जिन लोगों ने तिब्बत के भौगोलिक मानचित्र को देखा है, वे देखेगें कि उस देश के दक्षिण पश्चिम अंश में कैलाश पर्वत श्रेणी विद्यमान है। लगभग चार हजार या उससे भी कई शताब्दियों पहले एक महापुरुष उस अंचल में विद्यमान थे। तिब्बत के कैलाश अंचल में जिस महामानव ने आदि धर्म का प्रवर्तन किया था, वे अशेष गुणसम्पन्न योगी थे-योगेश्वर के रूप में ही उनकी प्रसिद्धि थी। ये कभी योगभ्रष्ट नहीं हुए। उनसे ही समाज का सविशेष विकास हुआ है।" स्पष्टतः प्रमोद चटर्जी यहाँ ऋषभदेव, आदिनाथ या शिव की तरफ इशारा करते हैं। ब्रह्मा द्वारा वेदों की उत्पत्ति की मान्यता श्रमण संस्कृति की इस मान्यता से और भी पुष्ट होती है कि मूल वेदों की रचना भरत चक्रवर्ती द्वारा अपने पिता ऋषभदेव के उपदेशों को सूत्रबद्ध करके की गयी थी। बाद में वेद जब विच्छिन्न होने लगे तब उनमें भौतिक कामनाओं की पूर्ति के लिये हिंसक बलि, यज्ञ और शक्तिशाली देवताओं को प्रसन्न करने की स्तुतियाँ परवर्ती भाष्यकारों ने जोड़ दीं। निवृत्ति धर्म को गौण कर प्रवृत्ति धर्म का प्रभाव बढ़ने लगा था। तत्पश्चात् व्यास जी ने इन ऋचाओं को संकलित कर उनके चार नाम से चार वेद बना दिये। प्राचीन काल में वेद जैन संस्कृति में भी मान्य रहे हैं। इसका प्रमाण आचारांग सूत्र से भी मिलता है। जहाँ कई स्थानों पर वेदवी शब्द का प्रयोग हुआ है जो गहन अनुसंधान का विषय है। "एवं से अप्पमाएण विवेगं कीट्टति वेदवी" - आचारांग सूत्र श्रुत १ अ. ४ उ. ४ "एत्थ विरमेज्ज वेदवी" - आचारांग सूत्र श्रुत १ अ. ५ उ. ६ भगवान् महावीर द्वारा प्रथम समवसरण के समय गौतम आदि गणधरों के वैदिक श्रुतियों के विषय में संदेह का स्पष्टीकरण और उन श्रुतियों की सही व्याख्या करना इस मान्यता को और भी पुष्ट करता है कि प्राचीन काल में वेद जैनियों के मान्य ग्रन्थ थे। पारसी धर्मग्रन्थ अवेस्ता में प्राचीन वेदों का वर्णन मिलता है। विद, विश्वरद, विराद और अंगिरस। ये वेद खरोष्टि लिपि में लिपिबद्ध थे। गोपथ ब्राह्मण (पूर्व २-२०) में स्वयंभू कश्यप का वर्णन मिलता है जो ऋषभदेव हैं। भागवत में और विष्णु पुराण में ऋषभदेव को विष्णु का अवतार बताया गया है। विष्णु शब्द में विष का अर्थ- प्रवेश करना तथा अश् का अर्थ- व्याप्त करना (धातु से) किया गया है। विष्णु पुराण में भी विष धातु का अर्थ प्रवेश करना है, सम्पूर्ण विश्व उस परमात्मा में व्याप्त है। ऋग्वेद में विष्णु को सौर देवता कहा है -S165 - Adinath Rishabhdev and Ashtapad

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