Book Title: Ashtapad Maha Tirth 01 Page 177 to 248
Author(s): Rajnikant Shah, Kumarpal Desai
Publisher: USA Jain Center America NY

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Page 64
________________ Shri Ashtapad Maha Tirth फिर इसके मध्य में हैं वे साक्षात् सर्वज्ञ प्रभु हैं जो तीन जगत् के ईश्वर हैं और उनकी तेतीस करोड़ देवता सेवा करते हैं। इन्द्रियैर्न जितो नित्यं, केवलज्ञान निर्मलः पारंगतो भवाम्भोधे, यो लोकान्ते वसत्यलम् ॥९॥ जो प्रभु, इन्द्रियों के विषयों से कभी जीते नहीं गए, जो केवलज्ञान से निर्मल हैं एवं जो भवसागर से पार हो गए और लोक के अन्तिम भाग-मोक्ष में निवास करते हैं। अनन्त रूपो यस्तत्र कषायैः परिवर्जितः यस्य चित्ते कृतस्थाना दोषा अष्टदशापि न।।१०।। वे मोक्ष स्थित प्रभु अनन्त रूप-ज्ञान, दर्शन, चारित्र, वीर्य अनन्त चतुष्टय-के धारण करने वाले हैं, कषायों से रहित हैं और जिनके चित्र में अठारह दोषों ने स्थान नहीं किया है। लिंगरूपेण यस्तत्र, पुंरूपेणात्र वर्त्तते। राग द्वेष व्यतिक्रान्तः, स एष परमेश्वरः।।११।। वे वहाँ मोक्ष में लिंगरूप-ज्योति रूप में हैं और यहाँ पुरुष-प्रतिमा रूप में वर्तते हैं, राग-द्वेष से रहित ऐसे ये परमेश्वर हैं। आदि शक्तिर्जिनेन्द्रस्य, आसने गर्भ संस्थिता। सहजा कुलजा ध्याने, पद्महस्ता वरप्रदा ।।१२।। ध्यान स्थित प्रभु के परिकर के आसन के मध्य भाग में स्थित कर कमलों से वर देने वाली मुद्रा में आदिशक्ति श्रुतदेवी-सरस्वती जिनेन्द्र के साथ ही उनके कुल में जन्मी हुई हैं । धर्म चक्र भिंद देविमिंद ! धर्म मार्ग प्रवर्तकम्। सत्त्वं नाम मृगस्सोयं मृगी च करूणा मता ॥१३।। हे देवी ! यह धर्मचक्र, धर्ममार्ग का प्रवर्त्तकम है यह सत्व नामक मृग और करुणा नामक मृगी है। अष्टौ च दिग्गजा एते, गजसिंह स्वरूपतः। आदित्याद्या ग्रहा एते, नवैव पुरूषाः स्मृताः।।१४।। ये हाथी और सिंह के स्वरूप वाले आठ दिशा रूपी दिग्गज-हाथी हैं और ये नौ पुरुष सूर्य आदि नव ग्रह हैं। यक्षोऽयं गोमुखो नाम, आदिनाथस्य सेवकः।। यक्षिणी रुचिराकारा, नाम्ना चक्रेश्वरी मता ।।१५।। यह आदिनाथ-ऋषभदेव भगवान् का सेवक गोमुख नामक यक्ष और यह सुन्दर आकृति वाली यक्षिणी चक्रेश्वरी नामक देवी लोक में प्रसिद्ध है। इन्द्रो पेन्द्राः स्वयं भर्तु र्जाता श्चामर धारकाः। पारिजातो वसन्तश्च, मालाधरतया स्थितौ ।।१६।। इन्द्र और उपेन्द्र स्वयमेव प्रभु को चामर ढलाने वाले हैं। पारिजात वृक्ष और वसन्त ऋतु मालाधारण रूप में स्थित हैं। Adinath Rishabhdev and Ashtapad 3200

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