Book Title: Ashtapad Maha Tirth 01 Page 177 to 248
Author(s): Rajnikant Shah, Kumarpal Desai
Publisher: USA Jain Center America NY

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Page 16
________________ || 10 आदिनाथ ऋषभदेव और अष्टापद || अखण्ड कृतित्व व्याप्त व्यक्तित्व लता बोथरा तीर्थों की श्रेणी में सबसे प्राचीन शाश्वत तीर्थ अष्टापद है जो प्रथम तीर्थंकर श्री ऋषभदेव की निर्वाण भूमि है। ऋषभदेव को आदिनाथ भी कहा जाता है। 'आदिमं पृथिवीनाथं आदिमं निष्परिग्रहम् । आदिमं तीर्थनाथं च ऋषभस्वामिनं स्तुमः ' ॥ जो इस अवसर्पिणी काल में पहले ही राजा, पहले ही त्यागी मुनि पहले ही तीर्थंकर हुए उन ऋषभदेव स्वामी की हम स्तुति करते हैं। (We pay homage to Rishabhdev who was the first king, first ascetic, first Tirthankara in this Avasarpini Era. Rishabhdev, as the founder of Civilization preached a religion, started the culture & showed the path of liberation). ऋषभदेव की मान्यता सिर्फ जैन ग्रन्थों में ही नहीं, जैनेतर ग्रन्थों में भी व्यापकरूप से मिलती है। इस सन्दर्भ में श्री वी. जी. नायर ने लिखा है : "Adi Bhagwan was the organiser of human society and the originator of human culture and civilization. He lived in the days of hoary antiquity. Adi Bhagwan was the first monarch, ruler, ascetic, saint, sage, omniscient teacher, law maker and architect of humanism, and humanitarianism." " नित्यानुभूत निजलाभ निवृत्ततृष्णः श्रेयस्वतद्रचनया चिरसुप्तबुद्धेः लोकस्य यः करुणयामयमात्मलोक माख्यान्न भो भगवते ऋषभाय तस्मै । " भागवत् पुराण निरन्तर विषय भोगों की अभिलाषा करने के कारण अपने वास्तविक श्रेय से चिरकाल तक बेसुध हुए लोगों को जिन्होंने करुणावश निर्भय आत्मलोक का संदेश दिया और जो स्वयं निरन्तर अनुभव होने वाले आत्मस्वरूप की प्राप्ति के कारण सब प्रकार की तृष्णाओं से मुक्त थे उन भगवान् ऋषभदेव को नमस्कार हो । Rishabhdev & Ashtapad Vol. VII Ch. 45-1, Pg. 2984-2999 Adinath Rishabhdev and Ashtapad 152 a -

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