Book Title: Apbhramsa Kavyatrayi
Author(s): Jinduttsuri, Lalchandra B Gandhi
Publisher: Oriental Research Institute Vadodra
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पौषधविधिप्रान्ते--
गणिजिणवल्ल हेण पोसहविहिमिह लिहियं हियठया ।
सइ हियए कुणंतु निसुणंतु गुणंतु मुणंतु विहिरया ॥ सङ्घपट्टकप्रान्ते-(परि० १, पृ० ८६ द्रष्टव्यम् ) प्रश्नोत्तरषष्टिशतकप्रान्तेप्रत्येकं हरिधान्यभेदशशिनः पृच्छन्ति किं लुब्धकः !
त्वं प्राप्तं कुरुषे मृगव्रजमधोऽखादद् गृहीताऽवदत् । कीदृग् भाति सरोऽर्हतश्च सदनं किं चाल्पधी प्नुवन्
पृष्टः प्राह तथा च केन मुनिना प्रश्नावलीयं कृता? ॥-अव० जिनवल्लभेन। अजितशान्तिस्तवप्रान्ते
इय विजया-जियसत्तुपुत्त सिरिअजियजिणेसर !
___ तह अइरा-विससेणतणय ! पंचमचकीसर ! । तित्थंकरसोलसम ! संतिजिण वल्लह सतह
कुरु मंगलमवहरसु दुरियमखिलं पि थुगंतह ॥ पार्श्वनाथस्तोत्रप्रान्ते
वाघारियपाणि य मासिएण सावणसियद्रमीए तुमं ।
सम्मेयपव्वए जिण वल्लहसिवसुक्ख पत्त जए ॥ भत्तिब्भरादि-वीरस्तोत्रप्रान्ते
इय तुह गुणकणगुणणेण जं मए किंचि अज्जियं कुसलं ।
तेण तुम चिय मज्झं सया वि जिण वल्लहो होज्जा ॥ दुरियरयादि-वीरस्तोत्रप्रान्ते--
एवं वीरजिणेस दीणेसर ! तुमं मोहंधविद्धसणं ।
भवंभोरुहबोहसोहजणयं दोसायरुच्छेयणं । थोउं जं कुसलाणुबंधिकुसलं पत्तो म्हि किंचि तओ
जाइज्जा जिण वल्लहो मह सया पायप्पणामो तुह ॥ भावारिवारणादि-चीरस्तोत्रप्रान्ते
इत्थं ते समसंस्कृतस्तवमहं प्रस्तावयामासिवान्
आशंसे जिनवीर ! नेन्द्रपदवीं न प्राज्यराज्यश्रियम् । लीलाभांजि न वल्लभप्रणयिनी-वृन्दानि किन्त्वर्थये
नाथेदं प्रथय प्रसादविशदां दृष्टिं दयालो! मयि ।।
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