Book Title: Anusandhan 2019 01 SrNo 76 Author(s): Shilchandrasuri Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad View full book textPage 5
________________ नवांनवां प्रमाणोना आधारे, प्राप्त थयेलां-थतां नूतन सन्दर्भोना आधारे, पुनः विचार करवो, पुनः नवा अर्थनो, पाठनो निर्धार करवो, नवा निष्कर्षो आपवा, तेनुं नाम 'संशोधन'. आ संशोधन, जो ते कोई कृति विषे होय तो, सम्पादन पण गणाशे. केम के आमां पण, कृतिमां के हस्तप्रतिमा प्रवेशेला खोटा के भ्रष्ट-भूल भरेला पाठोने दूर करवा (लिप्यन्तर वेळाओ), अने भूलोने पकडीने तेना निवारण माटे नानामोटा कौंस, प्रश्नचिह्नो वगेरे प्रयोजवां, ओ खरुं जोतां सम्पादन ज गणाय, गणाएं जोइओ. अलबत्त, आ सम्पादन संशोधनाभिमुख होय, पेली नवसर्जित कृतिना सम्पादननी जेम सर्जनाभिमुख नहि होय, अटलुं स्पष्ट थई जर्बु घटे. जो के संशोधन पण क्यारेक सर्जननी कक्षानुं बनी शके अवश्य; निपुण संशोधकनी सर्जक-प्रतिभामां आ प्रकारचं कौवत होय ज, अम कही शकाय. आवा संशोधक अने तेमनुं आ प्रकार, संशोधन सांपडे त्यारे विद्याजगतमां अने शोधजगतमां ओक आनन्दनो अभिनिवेश प्रसरतो होय छे. अस्तु.Page Navigation
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