Book Title: Anusandhan 2019 01 SrNo 76
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 4
________________ निवेदन बे शब्दो छ : सम्पादन अने संशोधन. बन्ने शब्दो द्वारा जे क्रियाओ सूचवाय छे ते परस्परनी पूरक क्रियाओ छे. संशोधन अने सम्पादन, बन्ने साथे चालनारी प्रक्रियाओ छे. एक विना बीजी, मोटा भागे, नथी सम्भवती. जो के अक वात अहीं ज स्पष्ट करवी जोई : 'सम्पादन'मां 'संशोधन' न होय तेवू शक्य छे; परन्तु 'संशोधन'मां 'सम्पादन' न होय ते शक्य नथी. दा.त. ओक सर्जके नवी रचना करी : ते वार्ता होय, काव्य होय अथवा निबन्ध पण होय; कोई पण साहित्य-प्रकार होई शके. ते सर्जक पोताना ते नवसर्जनने कोई वरिष्ठ साहित्यकार पासे, सुधराववानी दृष्टि लई जशे, अथवा तो कोई सामयिकना तन्त्री/सम्पादक समक्ष रजू करशे, त्यारे ते बधा तेनी ते कृतिने पोतानी रीते सुधारशे, कापकूप करशे, मठारशे, जेथी कृतिनो अनावश्यक . 'मेद' टळी जाय अने आवश्यक तत्त्वो उमेराय. आ क्रिया आपणे त्यां 'सम्पादन' तरीके जाणीती छे. आमां 'संशोधन'नो प्रवेश शक्य नथी; हा, कृतिने सुधारी तेने 'संशोधन', नाम, आप होय तो, आपी शकाय खरं. परन्तु मे भाग्ये ज त्यां बंधबेसतुं थाय. 'संशोधन' बे प्रकारे होय छे : ओक 'शोध', बीजुं 'संशोधन'. कोई अप्रकट - अप्राप्य - दुर्लभ कृति शोधवी ते 'शोध'; कोई पुरातात्त्विक उत्खनन आदि द्वारा नवां औतिहासिक तत्त्वो के पदार्थो खोळी काढवा ते 'शोध'. तो कोइ कृतिनुं पाठ-सम्पादन करवं, तेना पाठान्तरो लेवा-शोधवा अने तेमां मूळ तत्त्वनी के साचा अर्थनी निकट जता पाठोने स्वीकारवा तेमज ते सिवायना पाठोने टिप्पणी आदिरूपे नोंधवा - आ बधुं छे 'संशोधन'. कोइओ ओक अर्थ अथवा पाठ निश्चित को होय; कोई बाबत विषे कोईक चोक्कस धारणाओ बांधी आपी होय; पोतानी समक्ष उपस्थित आधार-प्रमाणोना सहारे, पोतानी मति-अनुसार, कोई मुद्दा विषे, कृति के तेना पाठ विषे - अर्थघटन विषे, इतिहासना कोईक बनाव विषे, तारण-निरीक्षण-निष्कर्षो आप्यां होय; ते बधां परत्वे, उपलब्ध

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