Book Title: Anusandhan 2013 07 SrNo 61
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 9
________________ विज्ञप्तिपत्रोनो स्वाध्याय 'अनुसन्धान'ना विज्ञप्तिपत्र-विशेषाङ्कनो बीजो खण्ड प्रगट करतां अनेरो आनन्द अनुभवाय छे. जो के बे खण्ड वच्चे समय धारवा करतां वधु गयो छे, तो पण एक सरस काम थयुं छे तेनो परितोष आ विलम्बने सह्य बनावे छे. आ खण्डमां ५८ नाना-मोटा पत्रो प्रकाशन पामे छे. आ पत्रोनी मूळ सामग्री प्राप्त करवामां, ते पछी तेने उकेलवामां तेमज तेनुं लिप्यन्तर करवामां, पछी तेनु सम्पादन - सम्मान करवामां खास्सो समय वह्यो छे. दरमियान, विहारयात्रा तथा अन्यान्य प्रासङ्गिक व्यस्तता पण रहे ज. ते बधुं छतां आ खण्ड तैयार थई शक्यो छे तेनो भारे परितोष छे. __ आ खण्डमां प्रकाशित पत्रो पैकी २५ पत्रो (पत्र क्र. ८, ११, १४ थी १९, २४, २७ थी ३०, ३५ थी ३७, ३९, ४०, ४२, ४९, ५२, ५३, ५५, ५६, ५८)नुं सम्पादन मुनि श्रीसुयशचन्द्रविजयजी तथा मुनि श्रीसुजसचन्द्रविजयजीए कर्यु छे. आ पत्रो तेमज अन्य अनेक पत्रोनां सांप्रत स्थान (कया भण्डारमा छे ते) शोधवानं. ते ते स्थानना कार्यवाहको अथवा तो माध्यमरूप मुनिवरो/गृहस्थोनो सम्पर्क करी, तेमने अनुकूळ बनावी, ते ते पत्रोनी हस्तप्रतोनी नकल मेळववानु, अने ते पछी ते ते पत्रोने मद्रण माटे उचित रूपमां तैयार-सम्पादित करवानुं कार्य, भारे खंत अने चीवट साथे, आ बन्ने मुनिवरोए कर्यु छे. आ माटे ते बे बन्धु मुनिवरोने धन्यवाद आपीए तेटला ओछा छे. मुनि श्रीत्रैलोक्यमण्डनविजयजीए ५८ पैकी १८ पत्रो (पत्र क्र० ७, १२, १३, २०, २३, ३२, ३४, ३८, ४१, ४३ थी ४८, ५०, ५१, ५४)नुं सम्पादन कर्यु छे. आ अङ्कना प्रूफवाचननी जवाबदारी पण, महदंशे, तेमणे ज स्वीकारी छे. पत्र क्र. २६- सम्पादन मुनि कल्याणकीतिविजयजीए तथा पत्र १ थी ६नुं सम्पादन मुनि विमलकीर्तिविजयजीए करेल छे. पत्र ९-१० नुं सम्पादन आ. श्रीश्रीचन्द्रसूरिजीए तथा पत्र ५७, सम्पादन पं. अंकित शाहे करेलुं छे. पत्र क्र. २१, २२, २५, ३१, ३३ नुं काम आ. शीलचन्द्रसूरि द्वारा थयुं छे. अलबत्त, अलग अलग व्यक्तिओ द्वारा थयेल लिप्यन्तरादिरूप सम्पादन पछी पण, ते तमाम पत्रोनुं पुनर्वाचन अने शक्य सम्मान पण करवानुं तो थयुं ज छे. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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