Book Title: Anusandhan 2013 07 SrNo 61
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 15
________________ 13 (२) बीजो पत्र देलवाडा-स्थित गच्छपति श्रीदेवसुन्दरसूरि प्रत्ये अजमेरथी पं. शान्तिसुन्दरे लखेलो १५१ श्लोकप्रमाण पत्र छे. आ पत्रना प्रारम्भे २४ तीर्थङ्करनी स्तुतिना २४ श्लोको छे, जे स्वतन्त्र स्तोत्रकाव्य तरीके आपणां प्राचीन स्तोत्रकाव्योमां स्थान प्राप्त करी शके तेवा प्रासादिक तथा सरस स्तोत्रकाव्यात्मक छे. २८-३१ मां देलवाडामुं, ३२-४७ मां गुरुना गुणोनुं वर्णन छे. ४८-७० श्लोको न होवाथी आ वर्णन तथा गुरुनुं नाम वगेरे अधूरुं रहे छे. ७१-७२मां अजमेरनुं वर्णन छे, तेमां त्यांना 'आनासागर' अने 'वीसलसमुद्र' नामना बे विशाळ जळाशयोनो उल्लेख ऐतिहासिक गणाय तेवो छे.. ७७मा श्लोकमां देवदत्त वाचकना सांनिध्यमां पोते (पत्रलेखक) पद्मानन्दकाव्य पर व्याख्यान आपता होवानो उल्लेख छे. तो पर्युषणमा लिम्बा मन्त्री द्वारा थयेल पर्वोत्सवमां कीर्तिसुन्दरमुनिना सहकारथी पोते कल्प-वांचन कर्यानो निर्देश छे (७९-८०). आ पछीना श्लोकोमा पर्वसम्बन्धी क्रिया-कर्तव्यो, साधुओ द्वारा तपश्चर्या, भगवतीसूत्रना तथा अन्य सूत्रोनां योगवहन, अध्ययन; साध्वीओ द्वारा दमयन्तीतप, अध्ययन, शिवमाला साध्वीए महानिशीथसूत्रना योगवहन कर्यानो विलक्षण लागे तेवो निर्देश (९६); श्रावकोनी तपस्या तथा धर्मकरणीनो निर्देश, तेमज मटकू, जासू वगेरे श्राविकाओनी धर्माराधनानुं वर्णन, तेओ उपदेशमाला भणती होवानुं वर्णन (१०८) बधुं सविस्तर १११मा श्लोकपर्यन्त छे. ११०मां अनेक तपनां नाम छे, जे अजमेरना लोकोए कर्यां हतां. प्रतिक्रमणनी क्रियामां केटला श्राद्धो जोडायेला तेनो उल्लेख (१००) जोतां एम लागे छे के ते समयमां श्रावको अलग प्रतिक्रमण करतां हशे, साधुओ साथे नहि करतां होय, माटे तेनी संख्या सहित खास नोंध थती होवी जोईए. आ पछी गच्छपतिनी निश्रामा रहेला मुनिवरोने तेमनी विशेषताओ साथे पत्रलेखक स्मरे छे. ११३-२१मां श्रीसोमसुन्दरसूरिनुं वर्णन थयुं छे, जे अहोभावभरेलुं छे. १२२-३९मां विविध मुनिवरोनां नामो-गुणोनुं वर्णन, १४०-४१ मां पोतानी पासेना साधुसाध्वी-श्राविकादि तरफथी वन्दन-निवेदन अने १५१मा पद्यमां ५ नामो श्रावक-श्राविकानां छे अने तेमने माटे "मज्ज्यायः-साध्वीनां" एवो उल्लेख छे ते परथी, ते गृहस्थो पत्रलेखकनां सगां होय तेवो भास थाय Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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