________________
21
एक श्लोकनो छन्द छे ‘महासमुद्र दण्डक' छन्द. छन्दशास्त्रोमां एक अक्षर के बे अक्षरनुं ज एक चरण होय तेवा एकाक्षरी-व्यक्षरी छन्दथी शरु थईने अक्षरोनी वृद्धिपूर्वकना अनेक छन्दो होय छे. तेमां 'दण्डक' प्रकारना, गद्य जेवा लागतां, पण खरेखर पद्यात्मक एवा छन्दो पण आवे, जेमां एकेक चरणमां विपुल संख्यामां अक्षरो होय. तेमां पण अक्षरवृद्धि थती जाय तेम दण्डकना प्रकार पण बदलाता जाय. तेमां सहुथी वधु अक्षर धरावतां चरणोवाळो प्रकार एटले आ महासमुद्र दण्डक. आ दण्डकना एकेक चरणमां ९९९ (नवसो नवाणुं), अक्षरो आवे. एटले तेनां चार चरणोनी कुल अक्षरसंख्या ३९९६ (ओगणचालीससो छन्न) थाय. आवा छन्दमां एक ज श्लोकमां पत्रलेखनपद्धतिना समग्र क्रमनो. काव्यचमत्कृति साधतां जईने निर्वाह करवो ए बहु मोटा गजानी काव्यप्रतिभा सिवाय असम्भवित छे. प्रस्तुत पत्रमा एक जैन मुनिए पोतानी अनुपम अने अनन्य कहेवी पडे तेवी अद्भुत प्रतिभानां तथा क्षमतानां नवतर दर्शन कराव्यां छे.
प्रथमनां ५ पद्योमा मङ्गलाचरण कर्य छे. पछी 'जयति' पदथी प्रारम्भाता दण्डकना प्रथम चरणमां, राणकपुरना तीर्थपति श्रीऋषभदेव- वर्णन-स्तवन ९९९ अक्षरोथी कर्यु छे, तेमां "चतुर्वक्त्रचैत्यैकचिन्तामणीकं" पदथी त्यांना चतुर्मुख जिनालयनो पण निर्देश आपी दीधो छे.
बीजा-त्रीजा चरणोमां राणपुरनुं मनमोहक वर्णनचित्र आलेखायुं छे. तेमां पण त्यां ऊगेलां/उपलब्ध वृक्षोनी नामावली ज पांच-पांच लीटीओ रोकी रही छे, ते परथी त्यांनी वनसम्पदानो ज नहि, पण कविनी तद्विषयक ज्ञानसम्पदानो पण ख्याल मळी रहे छे. तो त्रीजा चरणमां त्यांना नलिनीगुल्म विमाननी अनुकृतिसरीखा भव्य प्रासादनी संकुल रचनानां विविध अङ्गो, सुरेख वर्णन पण काबिलेदाद थयुं छे. त्यां ते समये केवी केवी रचनाओ हती (जे महदंशे आजे पण विद्यमान छे) ते जाणवा माटे आ नोंध दस्तावेज समी बनी शके. बीजा चरण-अनुसार, ते अरसामां त्यां-ते भूमि पर विक्रमादित्य (विक्रमसिंह) नामे राजा शासन हशे.
त्रीजा चरणमां लेखक पोतानुं नाम तथा सप्तपर्णीपुर (सादडी) उल्लेखे छे, अने चोमासानां धर्मकृत्योमा व्याख्यानरूपे छठ्ठा-ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्रनी वाचना, सूत्र-अर्थ बन्नेथी आदिम-आचाराङ्गनी वाचना, चम्पूकथा (नलचम्पू) तथा
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org