Book Title: Anusandhan 2013 07 SrNo 61
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 11
________________ 9 नो टूंको निर्देश करवामां आव्यो छे, जेथी अभ्यासीओने सुगमता थशे. * अने हवे आपणे पत्रोनो स्वाध्याय करीए : पत्र १ थी ६ एक ज कर्ता/लेखकनी पत्ररचनारूप छे. कर्तानुं नाम छे पं. शान्तिसुन्दर गणि. तेमना आ छ पत्रोनुं संकलन धरावती हस्तप्रति, जोधपुरना मानसिंह शोध केन्द्रमां विद्यमान छे. 'विज्ञप्तिसंग्रह' एवा नामे क्र. ७४९ तरीके त्यां तेनी प्रविष्टि छे. कुल १४ पत्रात्मक आ प्रतमां पत्र १ तथा पत्र ६ नथी. तेना कारणे प्रथम पत्रनो प्रारम्भिक अंश तथा बीजा पत्रमां ४८ थी ७० मा पद्य जेटलो अंश त्रुटित छे. तो बाकीना पत्रो पूरा होवा छतां पत्र ४, ५, ६ना अमुक अंशो ज उपलब्ध थाय छे, पूरेपूरा विज्ञप्तिलेखो नहि. प्रतिना प्रथम पत्रना प्रारम्भे पण कोईक पत्रलेख के काव्यो हशे एम मानवाने मन ललचाय छे. प्रतिना अन्तभागमां, पत्र ६नी समाप्ति पछी ५ काव्यो छे, अने ते पछी "पं. शान्तिसुन्दरगणिविबुधपुरन्दराणां लेखकाव्यानि कियन्ति ॥ " एवो उल्लेख पुष्पिकारूपे उपलब्ध थाय छे. पत्र ४, ५, ६ना अमुक ज- प्रारम्भिक अंशो प्राप्त थया छे, पण पाछळनो अंश मळ्यो नथी, ते अंगे एवी कल्पना करी शकाय के पत्रलेखके ते पाछळनो पत्रांश, जेमां पोताना चातुर्मास क्षेत्रना श्रावक-श्राविकानुं तप अने स्वाध्यायनुं, उत्सवादिनुं, सहवर्ती मुनिगणनां नामादिनुं वर्णन होय ते, ते त्रणे पत्रमां उमेरवा माटे एकसरखो तैयार करी राख्यो होय, अने ते प्रथमना पत्रोमां जोवा मळे छे तेवो ज होय, जे दरेक पत्रनो उपलब्ध अंश पूरो थया पछी जोडी देवानो हशे . ते बधां पद्यो एक ज समान होईने प्रतमां पुनः पुनः ते लख्यां नहि होय. प्रतमां क्यांय लेखन-संवत् के लेखकनो उल्लेख नथी, परन्तु प्रती लखावट तथा स्वरूप जोतां अनुमानतः लेखके स्वहस्ते ज लखी होवानुं अने तेथी ते १५मा सैकानी होवानुं मानी शकाय तेम छे. आ शान्तिसुन्दरगणिए तपगच्छपति श्रीदेवसुन्दरसूरि श्रीसोमसुन्दरसूरि तेमज ते ज परम्पराना महान् आचार्यो श्रीगुणरत्नसूरि, श्रीसाधुरत्नसूरि जेवा गुरुवर्यो उपर पत्रो लख्या छे, ते उपरथी तेओनो सत्तासमय १५ मो शतक छे. तेमणे बे बे गच्छनायको पर पत्र लख्या छे ते जोतां तेमनो आयुःकाल पण घणो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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