________________
10
दीर्घ होय तेम जणाय छे.
'जैन-परम्परानो इतिहास - भाग ३'मां श्री त्रिपुटी महाराजे श्रीशान्तिसुन्दरगणि विषे आ प्रमाणे नोंध करी छे :
"पं. शान्तिचन्द्र गणिराज. तेमनां बीजां नामो पं. शान्तिसुन्दरगणि अने पं. शान्तीशगणि पण मळे छे. ते भगवान शान्तिनाथना परम उपासक हता. मोटा तपस्वी हता. कांइक अधूरं छ मासी तप (छ मासना सळंग उपवास) करता हता. तेओ ज्ञानप्रेमी हता. तेमणे सं. १४७८मां खम्भातनी भरूचा पोषाळमां ग्रन्थभण्डारोनी रक्षा माटे नकामा कागळोमांथी दाबडा बनाववानी व्यवस्था गोठवी हती. आ अंगे उल्लेख मळे छे -
“पश्चाल्लेखः । संवत् १४७८ वर्षे वैज्ञानिकशिरोमणि पूज्य पं. शान्तिचन्द्रगणिपादैः सर्वं चित्कोशकार्यं मञ्जूषसमारचनादिकमकारि । भारूकच्छशालायां.... श्रीशान्तिसुन्दरगणिभिः चित्कोशमञ्जूषसमारचनादिकृत्यं विदधे ॥"
(खम्भात, शां. ताड. भण्डारगत 'पृथ्वीचन्द्रचरित' प्रतनी पुष्पिका). श्री जैन सङ्के पं. शान्तीशगणिना उपदेशथी सं. १४८३मां कुल्पाकतीर्थे श्रीमाणिक्यस्वामीना जिनप्रासादनो जीर्णोद्धार कराव्यो.' (पृ. १६५-१७७, नवी आवृत्ति).
उपरोक्त उल्लेखो परथी ख्याल आवे के तेओ केवा विद्वान्, वैज्ञानिक तथा तपस्वी हता.
१४-१५मा शतकनो काळ ए परम विद्वान् कविवरो अने ग्रन्थकारोनो प्रभावक काळ हतो, ए सुविदित छे. आ गाळामां सेंकडो जैन मुनिओए काव्य अने अलङ्कारनी चमत्कृतिओथी छलकाती, असंख्य नानी-मोटी रचनाओ करी छे, सिद्धान्तने लगती पण अनेक रचनाओ रची छे. आ काळमां लखायेल त्रिपाठ, पञ्चपाठ वगेरे प्रकारनी, कलात्मक हस्तप्रतिओ पण सर्व रीते स्पृहणीय तथा दर्शनीय बनी छे. आवा पण्डितयुगमां थयेला पं. शान्तिसुन्दरगणि पण संस्कृत काव्यरचनाना प्रकाण्ड विद्वान् हता, एवं तेमना आ विज्ञप्तिपत्रो वांचतां सहेजे समजाय छे.
आ विज्ञप्तिपत्रो चातुर्मास दरमियान आवता पर्युषणपर्वनी आराधना पछी शिष्य तरफथी गुरुजनोने लखाता क्षमापना-पत्रो छे. जो के पर्युषण तथा
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org